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________________ २६] तिलोपती द्वाराधिपति देवोंकी आयु आदिका निर्देश एक्क- पलिदोषभाऊ, बस-दंड-समानन्तु ग वर ' नेहा । दिव्यामल-मन-धरा, सहिदा "देवी सहस्ते हि ॥७८ || अर्थ :- ये देव एक पस्योपम मायुवाले दस धनुष प्रमाण उन्नत उत्तम शरीरवाले दिव्य और हजारों देवियों सहित होते है ॥७८॥ विजयदेव नगरका वर्णन वास्स उपरि-वेसे, विजयास पुरं हबेवि 'गयर्णान्हि । बारस सहस्स जोयण दीई · रामरस्मि । चरिमद्दालय | - · १२००० | ६००० अर्थ :- द्वारके उपरिम भागवर आकाशमें बारह हजार ( १२०००) योजन लम्बा और इससे आधे ६००० योजन ) विस्तार वाला विजयदेवका नगर है ॥७९॥ सटवेदीका निरूपण उ-गोजर संजुत्ता, "त-वेदी सरि होदि कणयमहं । 'चरियट्टासय-चारू, दारोवार जिन धरेहि "रम्परा ॥८०॥ ६. व. व.क. ज. य उ घरदेहा । ४. ६.ब.उ.बार सहस्स ७. ६... उ. रमजारो । [ गाया : ७६-६१ तस्सद्ध विश्वंभं ॥७६॥ - – उस विजयपुरमें चार गोपुरोंसे संयुक्त सुवर्णमयो तटबेदी है जो मार्गों एवं बट्टानिकालोसे सुन्दर है और द्वारोंपर स्थित जिन भवनोंसे रमणीय है ॥८०॥ · विक्रमपुरस्मि बिचित्ता, पासादा बिविह-व्यन-कणमया । अमेय संतान सोहिल्ला ॥८१॥ समचररस्सा वीहा, · :- विजयपुर में जनेक प्रकारके रत्नों और स्वर्णसे निर्मित, समचौरस, विशाल तथा अनेक आकारोंमें सुशोभित ऋद्र मुत प्रासाद हैं ।। ८१३॥ १. . . . . देहि । 1. T. 4. T. Wafa, #. ५. . . अ. म.उ. तर । ६. ६० परिमामय क.च.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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