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महाहियारो
मतान्तरसे विजयादि द्वारोंका प्रमाण
विजयादि बारानं, पंच-समा जोय नागि बिश्थारो । पत्तेक्कं उच्छे हो, सत्त स्थानि च पचास ७५ ॥
गाया : ७५ ७७ ]
जो ५०० । ७५० ।
अर्थ :- विजयादिक द्वारोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार पांचसी ( ५०० ) योजन और ऊंचाई सातसो पचास (७५४) योजन प्रभारी है।
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नोट :- इसी अधिकारकी गाथा ४४ में विजयादिक द्वारोंमेंसे प्रत्येकका विस्तार चार योजन प्रमाण और ऊँचाई ८ योजन प्रसारण कहीं गयी है ।
मतान्तरसे द्वारोंपर स्थित प्रासादोंका प्रमाण ---
बावरिम-घरामं उच्हो बारि
वो दो जोषणानि पद्मकं ।
केई
एवं
जो २ । ४ १
पति ।।७६ ॥
[ २४
पाठान्तरम् ।
अर्थ :- द्वापर स्थित प्रासादों ( घरों में से प्रत्येकका विस्तार दो योजन और ऊँचाई चार योजन प्रमाा है, ऐसा भी कितने ही आचार्य प्ररूपण करते हैं ॥३६॥
पाठान्तर ।
नोट :- इसी अधिकारकी गा० २६ से ३४ पर्यन्त प्रासादोंके विस्तार आदिका प्रमाण इससे भिन्न कहा गया है ।
द्वारोंके अधिपति देवोंका निरूपण
एवेस वाराणं, अहिव-देवा' हवंति बेतरथा ।
जं नामा ते बारा, संजामा ते दिविला ।।७७।।
१. फ. उ. प्पति, ज. प. स. चितरया । ४.
धर्म :- इन द्वारोंके अधिपति देव व्यन्तर होते हैं। जिन नामोंके वे द्वार हैं उनके अधिपति ष्यन्तरदेव भी उन्हीं नामोंसे प्रसिद्ध होते हैं ||७७।।
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पति य. परुषंति । २.प.व.क. ज. प. व. वैषो । रा. 3. रक्खादे व जादो।
६.ब. ०