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________________ YES ] तिलोगपाली निषपर्वतका मिरुपएड़ + सोलस-सहस्स-अ-सय-भावाला दो कला जिसह ददं । उणवीस हिदाय इसू. 'तीस महत्तानि अल्पवयं ॥१७७३ ॥ 4 । १६६४२,६ | ६३०००० 13 :- निपधपर्वतका विस्तार सोलह हजार प्राठसो बयालीस योजन भोर दो कला भाजित छह लाख तीस हजार (३३१५७१) योजन ( १६८४२१२ योजन ) तथा बासा, उन्हात प्रमाण है ।। १७७३ ।। अवा गिरि-रिसार्ण, विगुनियवासम्म भरह- इसु-माणे । अबनीने जं सेसं नियणिय बाणान संमानं ||१७७४॥ | गाथा १७७३-१७७७ - :-पव पर्वत और क्षेत्रके दूने विस्तारमेंस भरतक्षेत्र सम्बन्धी वारण-प्रमाणके कम कर देनेपर जितना शेष रहे उतना अपने-अपने बाणोंका प्रमारण होता है ।। १७७४ ।। 1500×7-100= =1208??<=3} {uot; farmer art! · च-उवि -सहस्साथि, जोन प्पन्न-अहि-एक्क-सया । योगि फलाओ अहिया, जिसह गिरिस्चरे बोबा ।। १७७५ ।। - | ६४१५६३ । अर्थ :- निषद्यपसको उत्तरजीवाका प्रमाण चौरानबे हजार एकसौ छप्पन योजन और दो कला अधिक है ।।१७७५।। एक्कं जोय-लक् चरबीस-सहस्स-शि-सय-छावाला । पव आगा अविरिया, जिस जीबाए षणपुट्टे ॥ १७७६ ।। । १२४३४६६ । :- निषधपर्वतकी जोवाके धनुपृष्ठका प्रमाण एक लाख चौबीस हजार तीनसो घालीस योजन मोर दोभाग अधिक (१२४३४६६६ मो० ) है ।। १७७६ ।। - साबीसम्महियं एक्क एवं बस सहस्त जोयणया । योनि कमाओ जिसहे चिट्टि भूमिमा मागं ।। १.७७७ ।। । जो १०१२७ । ९. व. ज. बीस २. ब. परिमाणं प. स. सह
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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