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________________ गाथा : १७५०-१७५ ] चउत्यो महाहियारो [ ४६३ म:-जिन नामों के वे कुट है, उन्हों नामबाले म्यन्तरदेव उन कूटोंपर रहते है। ये देव मनुमम रूप मुक्त भरीरके धारक और बहुत प्रकारके परिवारले संयुक्त हैं ।। १७Yell महापद्रह, कमल एवं ह्रीदेवी आदिका निरूपएपदम-दहाउ बुगुणो, 'पासायामेहि गहिर - भावणं । होदि महाहिमवंसे', महपसमो णाम विश्व - बहो ॥१७५०।। । वा १००० । जा २००० ! पा २ । पत्र:-महाहिमवान् पर्वत पर स्थित महापर नामक ब्रह पदहकी बसेक्षा दुगुने विस्तार, लम्बाई एवं गहराई वाला है । अर्थात् १००० योजन विस्तार, २००० यो. प्राराम मोर २० योजन गहराई वाला है ।।१७४०॥ xesy sena... दिले हरियो। बहुपरिवारहि जुगा, सिरियादेवि व परिणय-गुगोया ॥१७५१॥ मर्ग :-उस तालावमें कमलके ऊपर स्थित प्रासादमें बहुतसे परिवारसे संयुक्त तथा श्रीदेवीके सदृश्य परिणत गुण-समूहसे परिपूर्ण हो देवी रहती है ।।१७५१।। नवरि विसेसो एसो, दाना परिवार-परम-परिसंखा । जेसिम - मेसा - परमा', जिमभवषा तेलिया' रम्मा ॥१७५२॥ पर्व: यहाँ विशेषता केवल यह है कि ह्री देवी के परिवार और पोंकी संभ्या श्रीदेवीकी अपेक्षा दूनी है । इस तासाबमें जितने पम है, उतने ही रमणरेय जिन-भवन भी है ॥१७५२॥ बह सम्बन्धी कूटोंका निवा--- ईसाप - विसा - भागे, बेसमभो गाम सुरो फूगे। रक्सिण-विसा-विमागे, मे सिरिणिचय पामो य॥१७५३।। नारिरि-भागे फुगे, महिमवतो विचित्त-रयजमओ। पच्छिम • उत्तरभागे, जूडो एराबवो जाम ॥१७५४।। सिरिसंवमो ति फूो. उत्तर - भागे पहस बटुवि । एहि हि महहिमवतो य पंचसिहरो ति ॥१५॥ १.स. ४. क. प. य. पामोहि । २. १. प. म. ज. प. महाहिमवती। ३... पसा, *.. पोसा। ४. इ. स. क. ज. स. सति । ....... संवदं । ... संरचं ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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