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तिलोयपणती
[ गाथा : १७४४-१ve गव य सहस्सा उसया, छाहसरि गोयनाणि भंगा य । प्रडसीस' - हिवणवीसा, महहिमवंतम्मि पस्सभुवा ॥१४॥
। ९२७६ । प :-महाहिमहानुः पशाली पारवटना को हार को भी खिरनर भोजन और महतोससे भाजित उन्नीस कला प्रमाण (६२७ यो०) है ॥१७४४
जोयण अटु - सहस्सा, एकसयं अपीस - संजर्स। पंच - बताओ एवं, लगिरिको भूलिया • मानो ॥१४॥
। ८१२८ । मर्म :- उस पर्वतको चूलिकाका प्रमाए आठ हजार एकसो मट्ठाईस योजन और पांच कला ( १२८० योजन ) है ॥१७४५१।
महहिमवते बोस, पासेस उबवणागि रम्माणि ।
गिरि - सम - दोहतानि, वासावीण च हिमवगिरि ।।१७४६॥
मर्ग : महाहिमवान् पर्वतके दोनों पाएवं भायोंमें रमणीय उपधन हैं । इनकी लम्बाई इसी पर्वतको लम्बाईके बराबर पोर विस्तारादिफ हिमवान् पर्वतके सदृष्य है ॥१७४९)
सिद्ध' - महाहिमवंता, हेमबदो रोहिदो य हरि-णामो।
हरिकतो 'हरिवरिसो, पेलियो मा इमे कूसा ॥१७४७॥
मर्ग :-इस पर्वतके ऊपर सिद्ध, महाहिमवान्, हममत, रोहित, हरि, इरिकान्त, हरिवर्ष पौर वैडूर्य इस प्रकार ये आठ कूट है।।१७४७।।
हिमबंत-पम्बासय, महादो चाय • वास । पगि ।
एका कुगनं, पुगुष • समाणि सम्मासि ॥१७४८॥
भ:-हिमवान् पर्वतके फूटोंसे इन कूटोंकी ऊंचाई और विस्तार मादि सब दुगुने-दुगुने है।।१७४८।।
जं पामा ते कुग, तं गामा अतरा सुरा होति । अनुपम - सब - सरीरा, बहुषिह - परिवार - संजता ||।।
१६.ब. ब. मगोस । २... ब. एहं । 1. द. सम्म । ४. द. हर।