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________________ ४१२ ] तिलोयपणती [ गाथा : १७४४-१ve गव य सहस्सा उसया, छाहसरि गोयनाणि भंगा य । प्रडसीस' - हिवणवीसा, महहिमवंतम्मि पस्सभुवा ॥१४॥ । ९२७६ । प :-महाहिमहानुः पशाली पारवटना को हार को भी खिरनर भोजन और महतोससे भाजित उन्नीस कला प्रमाण (६२७ यो०) है ॥१७४४ जोयण अटु - सहस्सा, एकसयं अपीस - संजर्स। पंच - बताओ एवं, लगिरिको भूलिया • मानो ॥१४॥ । ८१२८ । मर्म :- उस पर्वतको चूलिकाका प्रमाए आठ हजार एकसो मट्ठाईस योजन और पांच कला ( १२८० योजन ) है ॥१७४५१। महहिमवते बोस, पासेस उबवणागि रम्माणि । गिरि - सम - दोहतानि, वासावीण च हिमवगिरि ।।१७४६॥ मर्ग : महाहिमवान् पर्वतके दोनों पाएवं भायोंमें रमणीय उपधन हैं । इनकी लम्बाई इसी पर्वतको लम्बाईके बराबर पोर विस्तारादिफ हिमवान् पर्वतके सदृष्य है ॥१७४९) सिद्ध' - महाहिमवंता, हेमबदो रोहिदो य हरि-णामो। हरिकतो 'हरिवरिसो, पेलियो मा इमे कूसा ॥१७४७॥ मर्ग :-इस पर्वतके ऊपर सिद्ध, महाहिमवान्, हममत, रोहित, हरि, इरिकान्त, हरिवर्ष पौर वैडूर्य इस प्रकार ये आठ कूट है।।१७४७।। हिमबंत-पम्बासय, महादो चाय • वास । पगि । एका कुगनं, पुगुष • समाणि सम्मासि ॥१७४८॥ भ:-हिमवान् पर्वतके फूटोंसे इन कूटोंकी ऊंचाई और विस्तार मादि सब दुगुने-दुगुने है।।१७४८।। जं पामा ते कुग, तं गामा अतरा सुरा होति । अनुपम - सब - सरीरा, बहुषिह - परिवार - संजता ||।। १६.ब. ब. मगोस । २... ब. एहं । 1. द. सम्म । ४. द. हर।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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