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गापा : १७०७-१७११ ] पजत्थो महाहियारो
[ प्रर्ष :-प्रथम अनोकका प्रमाण सामामिक देवों के साहव है। शेष मा सेनामों मैसे प्रापैक सेनाका प्रमाण उत्तरोत्तर दूना-दूना है ।।१७०६॥
कुबर-पदि-तहि, देवा विकरति विमल-सचि-जुरा ।
माया - लोह - बिहीणा, गिन्छ सेति सिरिख ॥१७०७॥
पर्य :- निर्मल शक्तिसे संयुक्त देव, हादी आदिक रीरोंको पिक्रिया करते हैं मोर माया एवं लोभसे रहित होकर नित्य ही श्रोदेवोकी सेवा करते है ।।१७०७।।
सत्तागीयान परा', पउमाह • पन्धिम' - पएसम्मि ।
कमल-कुसुमाग उरि, सत्त विषय कमय • हिम्मषिवा ।।१७०८॥
प :-मात मनोक देवोंके सात घर पचहके पविरम-प्रवेषामें कमल-कुसुमों के ऊपर सीमित
ferr भट्टत्तर - सय - मेश, परिहारा मसिनो पना यं ।
बहुविह-दर-परिवारा, उचम का विषय-जुसाई ।।१७०६॥
पर:-उत्सम रूप एवं विनयसे संयुक्त और बहुत प्रकारके उत्तमोत्तम परिवार सहित ऐसे एकसौ आठ प्रतीहार, मन्त्री एवं दूत हैं ।।१७०६॥
अठ्तर - सय - संला, पासाबा ताण पबम - गम्मेसु ।
पित-विविस-विभाग-धिया, बह-मन मे महिय-रममिन्मा ॥१७१०॥
मर्थ :-उनके प्रतिशय रमणीय एक सौ आठ भवन दहके मध्यमें कमलों पर विशा और विदिशाके विभागोंमें स्थित हैं ।। १७१०॥
होति पाणय-पहुबो, ताणं अवर्ष दि परम-पुस्मसु"।
उक्लियों' काल - वसा, तेलु परिमाप - उपएसो ॥१७११॥
प्रपं:-पत्र पुष्पों पर स्थित जो प्रकीर्णक मादिक देव हैं उनके भवनोंके प्रमाणका उपदेश कालषश्च ना हो गया है ।।१७११।।
...क.ग. प. घ. देखो। २... क. ग. य. न. मुरा। ३. ए. स. पत्रिमंपादि । ४.१...... खिा। ...... पठणार्षि, .. बनणा वि। ......ब.प. उ. पुणे। प, सम्यो ।