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सिलोयपम्पती
[भाषा : १७.२-१५.. -पद्रह पर मध्यम परिषदमें बालापनीय हाबों वाले चालीस हजार देवोंका मधिपति पम्द्र नामक देव है ।।१७०१॥
बासीस सहस्सागि, पासाका ताण विम्ब-मणि-वरिया । वपिला - पिसाए बालगय - डिय - सत्त-सरोब-ाम्नेसु ।।१७०२॥
:-दिव्य-मणियों ( रत्नों ) से घड़े गये अर्थात् बनाए गए उन ( देवों ) के चालीस हजार प्रासाद है. जो सात जलगत कमसोंके मध्य दक्षिण दिशामें स्थित हैं ।।१७०२।।
अस्वात-सहस्सारणं', सुरान सामी समुग्गय - पपाओ । बाहिर - परिसाए जदु', लामो सेवेषि सिरिषि १७०३।।
। ... १ प्रचं:-बाह्य परिषद के महानोर बार देहीका सवानिक गुलाबजाम देवा श्रीदेवी की सेवा करता है ।।१७०३।।
खरिदविसावता मालसहस्त-संस-पासावा । परमहह - मरमम्मि य, सुग-सोरण-नुवार-रमणिन्ना ।।१७०४॥
।४८... | वर्ष:-मंऋत्य-दिवा में उन देवोंके उन्नत तोरणद्वारोंसे रमणीय महसासोस हबार भवन पपदहके मध्य में स्थित हैं ॥१७०४।।
कुंजर - तुरय • महारह , गोवा-गंधय-मह-मासान ।
सस मनीया सत्तहि, कल्याहि सस्य संजुत्ता ।।१७०५॥
म:--कुवर, तुरत महारषबेल, गन्धर्ष, मतंक और दास इनकी सात सेनाएँ हैं। हममेंसे प्रत्येक सेना सात-सात कक्षाओं सहित है ।।१७.५।।
परभाषीय - पमान, सरिसं मामालियान सेले। विगुणा - विगुणा संक्षा, सम्म प्रणीएस पत्ते ॥१७०६॥
१ प.प.क.क. म... सहमालि । २. 1. गाडलायो, ... ग. R. .. मसुरणपो । ३. ६.क.ब. २. ३. पेडो। .६.ब.क. प. य. स.साए।