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सिहरी-वप्पल कूग, पवाहिसा होति तरस सलिसम्मि ।
तर'-वण - पेरोहि बुगा, तर - ममरेहि' सोहिल्सा ।।१६८७।।
मर्ष:-पप्राहफे जलमें उत्तरदिगाफो ओरसे प्रदक्षिणरूपमें जिनफूट, श्रोनिचय, वंडूर्य, भड्मय, अम्बरीक, रुचक, शिखरी और उत्पलकूद, ये फूट उसके जामें सट-वैदियों और वन-वेदियों सहित व्यन्तर नगरोंसे खोभायमान हैं ।।१६८१-१६८७।।
उवयं मू - मुहवासं, माझं पणवीस तत्तियं बलिवं । मुह • भूमि - जुबस्स, पसेकक जोयवाणि कडाणं ॥१६८८।।
। २५ । २५ । १ । । भ:-उन कूटों से प्रत्येक कूटकी ऊँचाई पच्चीस योजन, भूविस्तार भी पच्चीस योजन, मुख-विस्तार साडे बारह योजन और मध्य विस्तार भूमि एवं मुखके जोरका अर्घभाग [{(२५+ (२१):=} मर्थात् १५१ योजन] प्रमाण है ॥१६८८।।
पप हमें स्थित कमलका निरूपणयह - माझे प्ररनिंजय • गालं बादास - कोसभुम्सि । इगि - कोसं पाहल्लं, तस्स मुणाल ति रमममयं ।।१६८६॥
को ४२ । वा को । मर्म: सरोवर के मध्यमें बयालीस कोस ऊँचा और एक कोस मोटा कमल-नाल है। इसका मृणाल रजतमय और सीम कोस विस्तृत है ।।१६८६।।
कंगो' अरिष्ट-रवर्ग, गालो मेरुतिपरपन-निम्मषियो। तस्सधार पर वियसिय - पउमं घर-कोसमुम्बिई ॥१६६०॥
।फो । मर्ग :-उस कमलका कन्द भरिथरत्नसे और नाम वयं मरिणमे निर्मित है। इसके ऊपर पार कोस ऊँचा एक किषित् विकसित पप है ।।१६९॥
चज-कोस-हंस माझ मते दो-कोस-महब बन • कोसा । पतक इगिकोर्स, उस्लेहायाम - कलिया तस्स Item
।को ४ । को २ । को । हो।।
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१.ब.प.क. ज. प. उ. तब। २...
एवरेसु । १. ८.ब.क. न. प. उ.मा ।