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________________ ४७८ ] तिलोयपणती [ गापा : १६८५-१६५६ प:-हिमवान् पर्वतके मध्य में पूर्व-पश्चिम सम्हायमान, पायौ योजन विस्तृत और एक हजार योजन प्रमाण लम्बाईसे शोभायमान पप नामक मह है ॥१५८०॥ इस-ओमभागि गहिरो, घर-तोरण-दि-जयप-बहि । सोवाह सहिदो, सह • संघर • रपन - रविहिं ॥१६८१॥ प्रर्ष :-यह पपाह दस योजन गहरा तथा चार तोरणों, वेदियों, नन्दनवनों भोर मच्छी तरहसे गमन करने योग्य, उत्तम रलोंसे विरषित सोपानों सहित है ॥१६८१॥ बेसबम - रणाम - फुगे, साने होवि 'पंकय • बहस । सिरिगिचय-गाम-गो, सिहि विस-भागम्हि णिहिट्ठो ।।१६८२॥ अर्थ :-इस पनाहके ईशानकोणमें वेश्रवण नामक कूट और आग्नेयमें श्रीनिचय नामक फूट कहा गया है ।।६।। मुल्ल-हिमवंत-फूटो, गारिदि-भागम्भ तस णिदिहो । पब्लिम • उत्तर - भागे, कूडो एसक्दो नाम ॥१६८३॥ प:-उसके नैत्य भाग में खुहिमवान् कूट और पश्चिमोत्तर भागमें ऐरापत नामक कूट कहा गया है ॥१६॥ सिरिसंचय - कूमे सहा भाए पजम • दहस्त उत्तरए । एवेहि डेहि, हिमबंतो पंच - सिहरि - नाम - गुदो ॥१६८४॥ म:-पदहके उत्तरभागमें श्रीसञ्चय नामक कूट स्मिस है । इन पाँच कूटोंसे हिमवान् पर्वत 'पंचशिबरी' नामवाला है ॥१६॥ उपवन-देसी-जुत्ता, तर • पयरेहि होति रमगिजा । सम्बे कूडा एवे, गावाविह - रयण - निम्मविया ॥१६॥ w:-नाना प्रकारके रत्नोंसे निर्मित ये सब फूट उपवन-वेदियों सहित, प्यन्तरों के नगरोंसे रमणीय है ।।१६।। उत्तरविसा-मागे, मलम्मि परम - दहस्स जिन-यो। सिरिषियं बेलियं, अंकमपं अंबरोय - बचगं ॥ १६॥ __.. ब. क. स. स. समयपहाय, य. कम्पमस्त ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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