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________________ तिलोपप गती 1:१९७०-१६७५ कल्हार-कमल-बल-गोलप्पल-कुमुव-कुसुम - संपन्या । जिण-उम्साग-बणेस, पोपसरणी • वापि - बाबा ।।१६७०। वर्ष :-जिनगृहके उचान-वनोंमें कल्हार, कमल-फन्दल, नीलकमल और कुमुदके फूलोंसे व्याप्त पुष्करिणी. वापी और उत्तम फूप हैं ॥१६७०।। गंवादीप्रति-महल, ति-पीट-पुवाणि घाम-परकाणि । बत-ए-मझ - गयाणि, चेविय - महानि सोहति ।।१६७१॥ पर्ष :-बारों वनोंके मध्य में तीन मेमसा-युक्त नन्दादिक वापिकाएँ, तीन पीठों वाले धर्मचक्र मौर चरयवृष्ट मोप्रायमान हैं ।।१६७१।। शेष फूटोंपर स्थित व्यन्तर-नगरोंका निरूपणसेसेसु कूडेसु, तर - रेवाण होंति पासारा। घउ-तोरण-वेदि-बुवा, नानाविह - रयण - गिम्मविया ॥१६७२।। प्राय कटोपर गर तोरण-बदिव सहित और नानाप्रकारके रनोंसे निर्मित व्यन्तर देवकि भवन है॥१९७२ हेमवद - भरह - हिमवंत - वेसवन - णामषेय-फुरसु । निय -कूट - माम - देवा, सेसे णिग्र-कम-नाम-पीओ ॥१६७३॥ पाय:-हैमवत, भरत, हिमवान् और वैववरण नामक कूटोंपर अपने-अपने कूटोंके माम धारक देव तथा गेष फूटोंपर अपने-अपने कूटोंके नामको देवियों रहती है ॥१३॥ बहु - परिवारहि हुवा, ते तेतु देव - वेजीओ। वस-घणु-उच्छेह-सपू, सोहम्मिवस्स ते प परिपारा ।।१६७४।। म:-इन कूटों पर बहस परिवार सहित और दस-सानुष प्रमाण ऊँचे सरीरसे युक्त जो देव-देदिया स्थित है, वे सोधर्मइन्द्र के परिवार स्वरूप हैं ।।१६७४।। ताणं वर • पासावा, सकोस • इगितौस बोषमा-या। हो - कोस - सष्टि - जोयण • उदया सोहति रयनममा १६७॥ १.व. र. क. ब. व. २. कृण । २. द... ब. य... ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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