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तिलोयपण्णती [ गापा : १६५९-१९५४ प्र:-( उपयुक्त तीन धारोंसे ) पूर्वमुख धारकी ऊंचाई बाठ योजन, विस्तार पार मोबन और विस्तारके सह प्रवेश भी भार योजन प्रमाण है। मेष पक्षिण और उसर द्वारकी लम्बाई प्रादि पूर्व-द्वारसे माघी है ।।१६५८।।
___ अ य वोहत, बोहल्याउभाग - तस्य - वित्थाएं। मसार:- जोगवा
लिया : लिइसे ।।१६५६॥ प्रपं:-जिन भवनमें माठ योजन सम्बा, लम्बाईक पतुर्ष माग ( दो योजन) प्रमाण चौड़ा और धार योजन ऊँचा देवच्छन्य है ।।१६५६।।
सिंहासणावि-सहिया, पामर-कर-गाग-बाल-मिहुग-युवा । पुरु - जिण • तुगा - परिमा, अशर-सय-पमाखायो ।।१६६०॥ सिरियेवो मुददेवी, सम्बाण - समाकुमार - प्रसाण ।
क्याणि अट्ट • मंगल - देवमम्मि टुति ॥१५॥
प्रपं:-सिंहासनादि सहित, हायमें चमर सिए हुए नाग-यम-युगलसे संयुक्त, षम जिनेन्द्र सहम उतना एकसौ आठ संख्या प्रमाण जिन प्रतिभाएं तथा श्रीदेवी, श्रुतदेवी, सहिदेव और सनत्कुमार यशों की मूर्तिया एवं बाठ मङ्गलद्रव्य देवच्छन्दकपर स्थित हैं ।। १६६०-१६६१॥
संबंत - कुसम - रामा, पाराक्य-मोर-कठरिसहयगया ।
मरगय • पवाल • बन्ना, विराण - लिवहा विराति ||१६६२॥
प्रबं :-वहाँपर सटकती हुई पुष्पमालाओं सहित कबूतर एवं मयूरके नम्ठ तथा मरका और मूंगा सट्टम वर्ण वाले दोशोंके समूह शोमायमान है ।।१६६२।।
भंभा-मुरंग महल-जयघंटा-कंसताल • तिवलि - बुदा । पशुपरह - संस - काहल - सुरतुंगुहि - सह - गंभीरा ॥१६६३॥ निणपुर - पुगार • पुररो, पोषक परनमंडवा विध्या । पणवीस - नोयगाई, वासो बिना मायामो ॥१६॥
।२५। ५० । मर्ग:-प्रत्येक जिमपुर-वारके बागे मम्मा ( भेरी), मृदङ्ग, मईस. जयघण्टा, कास्वताल और सिवसीसे संयुक्त तथा पटुपटह, शह काहल और देवदुन्दुमि आदिबाजोंके वादोंसे गम्भीर ऐसे
...... ज. प. उ. पोरा। २. द. 4. क. व. ग. इ. मसा।