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गाथा : १९५५-१६५८ 1 उत्यो महाहियारो
[ ४७३ ___2132 हिमवान् पर्वतस्पटी सE at FFERE सिद्ध-हिमवंत-कूग, भरह-इसा-गंगकर - सिरिणामा' । रोहीवासा सिष, सुर - हेमवं च समर्थ ।।१६५४॥
:-हिमवान् पर्वतके ऊपर सिर हिमवान्, भरत, इला, गङ्गा, श्री. रोहितास्या, सिन्धु, सुरा, हेमवत और वंश्रवण ये ग्यारह कूट है ।।१६५४।।
कूटोंका विस्तार श्रादिनवयं मू-मूह-पास, माझ पणुबोस तत्ति बलिय। मुह - भूमि - खुबस्स, पत्तषकं जोयाणि कुडाणं ॥१६५५॥
।२४ । २५ । २५ । १ ।। प्र:- इनमें से प्रत्येक कूटको ऊँचाई पच्चीस योजन, भू-विस्तार भी गम्चीस योजन, मुख विस्तार साढ़े बारह योजन और मध्यविस्तार भूमि एवं मुबका अधं ( F+= अति १५मो.) भाग प्रमाण है ।।१५।।
प्रथम कूट पर अवस्थित जिन-भवनका निरूपणएपकारस पुष्वापी, सम - बट्टा देखिएहि रमणिया ।
वैतर - पासाद - हुरा, पुल्चे कुम्मि लिण - भवर्ण ।।१६५६।।
म:-पूर्वादि दिशामों में क्रमशः स्थित ये ग्यारह कूट समान गोल है, वेदियोंसे रमणीय है मोर व्यन्तर देवोंके भवनोंसे संयुक्त हैं। इनमेंसे पूर्व टपर जिन-प्रवन है ।।१६५६||
मायामो पणासं, वित्थारो तहलं प गोपगया । पमहत्तरिमल-मुरमो, सि-हार पुरस्स बिप-निकेवरस ।।१६५७।।
५०१२५। ।३।। पर्य:-तीन तारों वाले इस जिन-प्रथमको लम्बाई पचास योजन, विस्तार पन्चीस योजन पौर लंबाई साढ़े सैंतीस योजन है ॥१६५७॥
पुम्ब - मुह - वार - उपमओ, पोषणया अट्ट तहलं हई। र - समं तु पवेस, तामवं रमित नुत्तर - मुगारे ।।१६५८॥
1८।४।४।४।२।२।
१. स. सिरियामा