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तिलोत
हिमवान् पर्वतकी पाध भुजाका प्रमाण-
दा
पंच सहसा तिसया, पन्नासा जोवनानि पन्नारस य कसाओ, एस्सभुमा खुल्ल हिमवंते ॥१६५० ॥
| ५३५०३२ ।
:- शुद्र हिमवान् पर्वतको पार्श्वभुजाका प्रमाण पांच हजार तीन सौ पचास योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में साढ़े पन्द्रह - भाग अधिक है ।। १६५० ।
पर्वतको तट वेदिय एवं उनका प्रमाण
हिमवेत सरिस-बी हाँ, त-देवदहति भूमि
बे कोसा उत्तुंगा, पंच-यजुस्सव-पमान - वित्विष्णा ।।१९४१ ।।
। को २ । ६५०० 1
[ गाथा ।१६५०-१६५३
अर्थ - भूमितलपर हिमवान् एवंतके सदृश लम्बी उसको दो तर वेदियों हैं। ये वेदियों दो कोस मी धीर पांचसौ धनुष प्रमाण विस्तार वाली है ।। १६५ ।।
पर्वतके पार्श्वभागों में वनखण्ड एवं वेदी
जोपण-वल-विषखंभो जभए पासेसु होदि पण संडी
बहु-तोरण-वार-खुश, देवी पुव्विल्ल- वे विएहि समा ।। १६५२ ।।
| बरण नो ।
:- पर्यंत दोनों पार भागों में भयं योजन-प्रमाण विस्तारसे युक्त वनखण्ड हैं तथा
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पूर्वोक्त वेदियों के समान बहुत तोरणद्वारोंसे संयुक्त एक बेदी है ।। १६५२ ।।
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खुल्ला हिमवंत सिहरे, समंतयों पउम देविया दिव्या । पण धनदेवी सव्वं पुणं पिव
एरम वसव्वं ॥१६५३॥
अर्थ: जुद्र हिमवान् पर्वतके शिखर पर चारों ओर पद्मरागमणियम दिव्य वैदिका है । वन और बनवेदी आदि सबका कथन, पूर्वके सहत यहाँ पर भी करना चाहिए ।। १६५३ ।।
.व.व. क्र. ज. प. स. २.. ज य भूमि १. ब. क.स.म.रा.समो