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तिलोपती
मा
अपने श्री
अर्थ :- इसी कालमें कल्पवृक्षोंका अन्य और कर्मभूमिका व्यापार प्रारम्भ हो जाता है तथा प्रथम तोथंकर और प्रथम चक्रवर्ती भी उत्पन्न हो जाते हैं ।।१६३९ ।।
फिल्स विजय भंगो, लिम्बु गमनं च बोव-जीवानं । चक्कधराज' विज्ञानं, हवेदि वंसस्स उप्पत्ती ॥१६४०॥
[ गाथा १६४० - १६४२
अर्थ :- चक्रवर्तीकर विजय भङ्ग पोर (तृतीय कालमें ही ) थोडेसे जीवोंका मोक्ष नमन होता है, तथा चक्रवर्ती द्वारा द्विजोंके वंश ( ब्राह्मण वर्ण ) की उत्पत्ति भी होती है ।। १६४० ।। दुस्समसमे काले सट्टामा सलाय पुरिसा व नवमाबि - सोलसंते, सचसु तिस्सु धम्म वोच्छेदो ।। १६४१ ।। अर्थ :- दुःषमासुषमा कालमें अट्ठावन ही खलाका पुरुष होते हैं और नोसे सोलहवें तीर्थंकर पर्यन्त सात सीपोंमें धर्मकी युति होती है ।। १६४१ ।।
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विशेवार्थ :- प्रत्येक उत्सपिरो अवसर्पिणी कालमें ६३ जीव तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण और प्रतिनारायण पदको धारण करनेवाले शलाका पुरुष होते हैं।
* वर्तमान हुण्डावरूपिणी कालके चतुर्थकास में शाका पुरुषोंकी संख्या ५८ है । भगवान् भादिनाथ तीसरे कालमें ही मोक्ष चले गए थे और शान्तिनाथ, कुन्युनाथ तथा अरनायके जीव एक ही समय में तीर्थंकर भी में भोर चक्रवर्ती भी थे तथा प्रथम नारायण त्रिपृष्ठका जीव हो अन्तिम तीर्थंकर महावीर हुआ । इसप्रकार अलाका जोवोंकी संख्या ५८ हुई ।
* वर्तमान हुवावरूपिणीकालमें तीन तीर्थंकर एक ही समय में दो पदधारी हुए वा भगवान् महावीरका जीव नारायण मौर तोयंकर इन दो पदोंका धारक हुआ । इसप्रकार इस कालमें चार जीव दो पदोंके धारक होनेसे शलाका जीवों की संख्या ३९ हुई।
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* यदि प्रादिनाथ भगवान्के तीसरे कालमें मोक्ष यमनकी विवक्षा न की जाय और भगवान् महावीर के पूर्वभव ( त्रिपृष्ठ नारायण ) की विवक्षा भी न की जाय तो इस हुण्डावसर्पिणीकाममें केवल सोम तीर्थंकर दो पदधारी होनेसे शलाका पुरुषोंकी संख्या ६* हुई ?
एक्करस होंति दद्दा, कलह-पिया गारवा व लव-संज्ञा ।
सक्षम
बोतिम तित्वमराणं च बग्गो ।। १६४२ ।। :–प्यारह रुद्र भौर कलह-प्रिय नौ नारद होते हैं तथा सातवें, तेईसवें और भक्तिम तीर्थंकर पर उपसर्ग भी होता है ।।१६४२ ।
१.क.उ.राम्रो विवा ।
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