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गाथा । १६४३-१६४५ ] पउत्थो महाहियारो
[ ४ER सदिय - बा - पंचमेस, कालेस परम-धम्म-मासयरा । विविह - कुश - कुलिंगी, दीसत छ - पापिट्ठा ।।१६४३॥ चंडाल-सबर-पाणा, पलिव-बाल-चिलाय' पनि कुला। बुस्समकाले करती, उबकाको होति बाराला ॥४॥
म:-तृतीय, चतुषं एवं पंचम कालमें उत्तम धर्मको न करने गाले विविध प्रकारले दुष्ट, पापिष्ठ, कुदेव और कुलिङ्गी भी दिखने लगते हैं, पान्डाल, शबर, पारण ( स्वपम), पुलिन्द्र, साइल और किरात भादि जातियां उत्पन्न होती है, तथा दु:षमा कालमें बयालीस कल्को एवं उपकल्को होते हैं ।।१६४३-१६४
:.. Aarti atar Tre आह - मनावट्ठो, मुबाढी बका-प्रमिा-पमूहा य । बह नानादिह - दोसा, विचित - मेवर हर्षति पुढे ॥१६४५॥
। एवं काल-विभागो समतो।
।। एवं भरहवेत पल्मन' समत्त । k:-प्रतिवृष्टि, बनावृष्टि, भूपदि पोर वचाम्नि प्रादिका गिरना, इत्यादि विचित्र भेदों सहित नानाप्रकारके दोष इस झुम्हावरूपिणी-कालमें हुआ करते हैं ॥१६॥
। इसप्रकार काल विभागका कथम समाप्त हमा।
[ भरतक्षेत्र का चित्र पृष्ठ ४७० पर देखिये ]
। इसप्रकार भरतक्षेत्रका प्ररूपण समाप्त हुआ ।
१. व........ व. र. मस्सए।
। २.२.क.उ. विलास, ह.ब.प. मिला। .......