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________________ चउत्यो महाहवारी कमसो बति हु सिय-काले मनुव-तिरिमाणमवि' संखा । तो उस्सप्पिणिए, तदिए वङ्गति पुण्यं वा ।। १६३५ ।। गावा : १६३५ - १६३६ ] अर्थ :- इस प्रकार तीन कालोंमें मनुष्य और तिथेच जीवोंको संख्या क्रमशः बढ़ती ही रहती है। फिर उसके पश्चात् उत्सपिणीके तीन अर्थात् प्रतिदुःषमा, दुःषमा भौर दु:षमसुषमा कालों में भी पहले सदृश ही वे जीव वर्तमान रहते हैं ।। १६३५ ।। श्रवसर्पिणी- उत्सारणीकामोंका प्रमाण अवसपिणि उस्सप्पिणि-काल-विम रहट घटियाए । होलि भरताना भरने रावर लिस्म पुर्व १११.६३६५ आप की अर्थ :- भरत और ऐरावत क्षेत्रमें रैहद घटिका न्यायसे भवसपियो मौर उस्सपिटी काल अनन्तानन्त होते हैं । ( अर्थात् से रहटको घड़ियां यत् घूमती हुई बार-बार ऊपर एवं नोचे प्राती-जाती है, उसोप्रकार अवसर्पिणीके बाद उत्सर्पिणी और उत्सर्पिणीके बाद अवसर्पिणी इस क्रमसे सदा न कालका परिवर्तन होता ही रहता है ) || १६३६ ।। gurrafort कालका निर्देश एवं उसके चिह्न - सपिरि उस्सपिरिंग-काल-सलाया गढ़े असंलागि । डासपिणी "सा, एक्का आएवि तस्स विमिमं ॥। १६३७ ।। वर्ष :- असंख्यात अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी कालकी शलाकाएं बीत जानेपर प्रसिद्ध एक हुकावसपिरी आती है; उसके चिह्न ये हैं ।। १६३७।। "सस्सि पि सुसमदुस्सम कालस्स *ठिविम्मि बोध-अवसेसे । fafe पाउस पडो विर्यालविय जीव उप्पती ॥१६३८ ।। [ ४६७ · वर्ष :- इस हुण्डावसपशो कालमें सुषमदुःषम (तृतीय) कालको स्थितिमें कुछ कालके अवशिष्ट रहने पर भी वर्षा श्रादिक पड़ने लगती है और विकलेन्द्रिय जीवोंकी उत्पत्ति होने लगती है ।।१६३८ । बाबाशे होदि कम्मभूमीए । कप्तान विरामो सक्काले जायंते, पदम बिरयो पदम - चक्की य ।।१६३६॥ - 1. «. 4. faflugfa, «. «. v. lakusfe) 3, 1, 4, 5, 1, 4. 3. ÀÌí य. उ. तर ४... स. प. उ.मिविग्मि । १.व.व. क्र. प.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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