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त्यो महाहियारो
कुसकरोंकी उत्पत्तिका निर्देश
बास सहस्से सेसे, उप्पली कुलकराम महम्मि ।
अश चोइसा
गावा: १६६० - १x६४ ]
·
ताणं, कमेण नामानि बोच्छामि ।। १५६० ।।
फालके एक
वर्ष
११ उत्पत्ति होने लगती है। अज ( मैं ) उन कुलकरोंके नाम क्रमशा: कहता हूँ ।। १५९० ।।
चोद कुलकरोंके नाम एवं उनका उत्सेध
कमच कव्ययव्यह-कणराय कणयद्वजा को 'गलियों गलिनम्पह-जलिमराय ' - ज्ञमिद्धजा गरिन तो ।। १५६१ ।।
पउमप - पउमराजा, पउमलुज- परमपुस-यामा य ।
आदिम कुलकर उदग्रो, वड- हरयो अंतिमस्स सचदेव ।। १५६२॥
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सेसानं उस्सेहे', संपति अम्हाण णतिय उदबेलो । कुलकर पहूदी जामा, एराणं हों
| ४ । ७ ।
अर्थ :- कनक. कनकप्रभ कनकराज, कनकध्वज, कनकपुंख ( कनकपुङ्गव ), नलिन, नलिनप्रभ नलिनराज, नलिनध्वत्र, नलिनपुंड ( नलिन पुजय ) पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज और पपुंख (पद्मपुङ्गव) क्रमाः ये उन चौदह कुलकरोंके नाम है। इनमें से प्रथम कुलकरके वारी की ऊंचाई चार हाथ और मन्तिम कुलकरकी ऊँचाई सात हाथ प्रमाण होती है ।। १४६१-१५६२ ।।
:- शेय कुलकरोंकी ऊंचाईके विषय में हमारे पास
जो कुलकर आदि नाम हैं. वे गुण ( सार्थक ) नाम हैं ।। १५१३ ।।
कुलकरों का उपदेश -
चीदह कुलकरों की
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१. द. व.क. ज. य उ बोलीसो
।
पर उसने ४. ६. . . . . . वय
गुजमाना ।।१५६३ ।।
ताहे बहुविह-ओसहि-बुबाए' पुढवोए पाबको पस्थि ।
सह कुलकश मरा", उपदेसं वेति' विनयानं ।। १५६४।।
इस समय उपदेश नहीं है । इनके
२.८. . क. ब. उ. एप्पिएराव
१. प.व. क्र. ज.
५. . . . . . ठाणं । ६. द. वि. दाँत