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________________ था:१५६६-१५८६ ४५४ ] तिलोयपग्णाली आक तेजो बुद्धी, बाहुबलं तह म बेह • उन्हहो । सति • विवि - प्पडमीमओ, काल • सहारेण बर्वति ।।१५८६।। प:-मायु, तेज, डि, बाह ( भुजा ) बल, देहकी ऊंचाई समा एवं वृत्ति (पर्य) पादिक सम काल-स्वभावसे उत्तरोत्तर बढ़ते जाते है ।।१५८६॥ पतिदुषमा कातकी परिसमाप्तिएवं बोलीमेनु, इगियोस • बहस - संस - बासेतु। पूरेषि भरहोते, मातो अविगुस्समो नाम ॥१५॥ । अविएस्सम-काल समत। :--इसप्रकार इक्कीस हजार संख्या प्रमाण वर्ष म्पतीत हो जानेपर भरतक्षेत्रमें भतिदुःषमा नामक काल पूर्ण होता है ।।१५८७।। . । अविदुषमाकास समाप्त हुआ । . दुषमाकासका प्रवेश और पाहारताहे दुस्सम-कालो, पविसपि तस्मि व मणव-तिरिमाएं। पाहारो पुध चिय, बीस - सहस्साहि पाच ॥१५॥ ब:-तब दुःषमा कामका प्रवेश होता है । इस कालमें मनुष्य- सियोंको माहार बीस इमार वर्ष पर्यन्त पहलेके ही सहा रहता है ॥१५०८।। आयु श्रादिका प्रमाणतस्स य पढम - परसे, बीस बासाणि होवि परमाक' । उपओ व तिलि हत्या, आउठ'- हत्या पति परे ॥१५८६।। । २० । ३। । :-इस कालके प्रथम प्रवेशमें उत्कृष्ट श्रायु बीस वर्ष भौर ऊँचाई तीन हाप प्रमाण होती है। दूसरे भाचार्य ऊंचाई साडे सीम हाथ प्रमाए कहते है ।।१५।। १.न.प.अप. उ. पुम्बयि , क. बम्बिय। २.प्र.ग. परमानो। ३. ५.ब.क. ज. प. च. पाहापा।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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