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तिलोयपणती [ गापा : १५७८-१५८० म:-इसके पापार उत्सपिणो ( इस ) नामसे विख्यात रमाय काल प्रवेम करवा है। इसके भेदों से प्रथम अविबुपमा, दितीय दुषमा, तृतीय पुषमसुषमा, चतुर्ष सुषमदुषमा, पाचवा सुषमा और छठा जोंको प्रिय सुषमसुषमा है ।।१५७६-१५७७।।
उत्सपिणी कातका काममानएवाग कालमान, अवसपिणि काल - मान-सारिकं । उच्चए - आ3 - पाहुबो, रिबसे दिवसम्मि बसें ॥१५७Et]
प्रश्दुस्समकाम वास २१००० । दुबास २१०००।
दुसममुसम सा १ को को रिणा वास ४२००० । REETससमदुसम हो
स र को कर मुसु सा ४ को को। ब :-इनका काल प्रमाण अवपिणी कासके प्रमाएसहन ही होता है। उत्सपिणी कालमें ( गरीरकी ) पाई और प्राय माथिक दिन-प्रतिदिन पकतो ही जाती है ॥१५७।।
विरोषा:-अयसपिणीकाम सा उत्सपिणीकालके अतिदुःपमाकासका · प्रमाण २१००० वर्ष, दुःखभाकालका २१००० वर्षे, दुःषमासुषमा कालका प्रमाण ४२००० यवं कम एक फोडाकोड़ी सागर, सुषमादुःषमाझा दो कोढ़ाफोड़ी सागर, सुषमाकालका तीन कोदाकोड़ी सागर और सुषमासुषमाकालका प्रमाण पार कोडाकोडी सागर है।।
सुवृष्टि निर्देषापुरसर मेघा ससिस, परिसंति विगाणिसव सह-जन।
वरमणिणाए ढा, भूमो सपला बि सीयलो होरि ।।१५७६।।
भ:-उत्सपिणी कासके प्रारम्भमें पुष्कर-मेष सात दिन पर्यन्त सुखोत्पादक जल परसाते हैं, जिससे वजाम्निसे जली हुई सम्पूर्ण पृथियो शोतल हो जाती है ।।१५०९।।
परिसंक्ति मोर-मेघा, खोर - असं तिमानि दिवसानि ।
खोर - लेह भरिया, सम्धामा होषि सा भूमी ॥१५८०॥
म:-क्षीर-मेघ उसने ( सात ) ही दिन पर्यन्त क्षीरजलको वर्षा करते हैं। इसप्रकार फोरजलसे भरी हुई यह पृथिको उत्तम कान्ति युक्त हो जाती है ॥१५६०।।