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तिलोरपणाती
[ वाया : १५६७-१५७१ पर्व :-उस समय महागम्भीर एवं भोपण संवर्तक वायु पलती है, जो सात दिन तक वृक्ष, पर्वत और शिला आदिकको चूर्ण कर देती है ।।१५६६ ।
तरु-गिरि-भंगेहि गरा, तिरिया य सहति गुरुव-मुक्खाई।
इच्छति 'सरम - ठाणे, दिलवंति बप्पयारेनं ।।१५६७।।
पर्व:-पक्षों और पर्वतोंके टूटनेसे मनुष्य एवं तिथच महादुःख प्राप्त करते है तपा। शरण योग्य स्थानको अभिलाषा करते हुए बहुत प्रकार विलाप करते है KREENATiwari
पंगा - सिन्धु - पीचं, वेयर - वगंतरम्मि पविसति ।
पुह - पुह संखेमा, पाहतरि सयल - जुयलाई ॥१५६८।।
म:-इस समय पृथक्-पृषक संन्याप्त एवं सम्पूर्ण बहत्तर युगल गङ्गा-सिन्धु नदियोंकी पेदी पोर विषयाध-वनके मध्य प्रवेश करते है ।।१५६८।।
देवा विज्याहरमा, कारण - परा जराण सिरियाएं ।
संलेखन - जीव • रासि. शिति तेसु पएसेतु ।।१५।।
प:- देव और विद्याधर दयाई होकर मनुष्य और निमंचों से संख्यात जीव रातिको उन प्रदेशों में ले जाकर रखते है ||१५६६11
उनचास दिन पर्यन्त कुवृष्टिताहे गभीर - गल्ली, 'मेषा मुंपति हिम-शार जसं ।
विस - सलिल पसेप, पत्तक्कं सत्त दिवसाणि ।।१५७०॥
म:-उस समय नम्भोर गर्जना सहित मेप सीतल एवं क्षार जल तथा विष-जलमेंसे प्रत्येकको सात-सात दिन पर्यन्त बरसाते है ॥१७॥
धमो धूलो पज्य, जालंत • जाला कला व 'दुष्पेन्छे ।
बरिसति बलब - गिबहा, एकेक सत्त रिवसाणि ।।१५७१।।
प्रबं:--इसके अतिरिक्त मेघोंके वे समूह धूम, धूलि, बस एवं जलते हुए दुओम ज्वाला समूह, इनसे प्रस्बैकको सात-सात दिन पर्यन्त बरसाते हैं ।।१५७१॥
..... सटाण। २. स. ब. क. प्र. म. न. देशेन व... मी, क. भ. प. दुपेन्यो।