SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५० ] तिलोरपणाती [ वाया : १५६७-१५७१ पर्व :-उस समय महागम्भीर एवं भोपण संवर्तक वायु पलती है, जो सात दिन तक वृक्ष, पर्वत और शिला आदिकको चूर्ण कर देती है ।।१५६६ । तरु-गिरि-भंगेहि गरा, तिरिया य सहति गुरुव-मुक्खाई। इच्छति 'सरम - ठाणे, दिलवंति बप्पयारेनं ।।१५६७।। पर्व:-पक्षों और पर्वतोंके टूटनेसे मनुष्य एवं तिथच महादुःख प्राप्त करते है तपा। शरण योग्य स्थानको अभिलाषा करते हुए बहुत प्रकार विलाप करते है KREENATiwari पंगा - सिन्धु - पीचं, वेयर - वगंतरम्मि पविसति । पुह - पुह संखेमा, पाहतरि सयल - जुयलाई ॥१५६८।। म:-इस समय पृथक्-पृषक संन्याप्त एवं सम्पूर्ण बहत्तर युगल गङ्गा-सिन्धु नदियोंकी पेदी पोर विषयाध-वनके मध्य प्रवेश करते है ।।१५६८।। देवा विज्याहरमा, कारण - परा जराण सिरियाएं । संलेखन - जीव • रासि. शिति तेसु पएसेतु ।।१५।। प:- देव और विद्याधर दयाई होकर मनुष्य और निमंचों से संख्यात जीव रातिको उन प्रदेशों में ले जाकर रखते है ||१५६६11 उनचास दिन पर्यन्त कुवृष्टिताहे गभीर - गल्ली, 'मेषा मुंपति हिम-शार जसं । विस - सलिल पसेप, पत्तक्कं सत्त दिवसाणि ।।१५७०॥ म:-उस समय नम्भोर गर्जना सहित मेप सीतल एवं क्षार जल तथा विष-जलमेंसे प्रत्येकको सात-सात दिन पर्यन्त बरसाते है ॥१७॥ धमो धूलो पज्य, जालंत • जाला कला व 'दुष्पेन्छे । बरिसति बलब - गिबहा, एकेक सत्त रिवसाणि ।।१५७१।। प्रबं:--इसके अतिरिक्त मेघोंके वे समूह धूम, धूलि, बस एवं जलते हुए दुओम ज्वाला समूह, इनसे प्रस्बैकको सात-सात दिन पर्यन्त बरसाते हैं ।।१५७१॥ ..... सटाण। २. स. ब. क. प्र. म. न. देशेन व... मी, क. भ. प. दुपेन्यो।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy