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गाषा : १५४२-१५४६ ] पउत्यो महाहियारो
प्र:-इसप्रकार दुवमा कानमें धर्म, आयु सौर ऊँचाई मादि कम होती जाती है. पश्चात् (कालके ) बन्तमें विषम स्वभाववाला ( जनमन्पन नामक ) इक्कीसवां काकी उत्पन्न होता है ।।१५४१॥
बोरंगजाभिषामो,' ताकाले मुणिवरो भवे एपको ।
सम्बसिरी तह विरवी, साषय-जग-मग्गिलोति' पंगुसिरी ॥१५४२।।
धर्म:--उस कल्कीके समयमें वीराङ्गा नामक एक मुनि, सर्वश्री मामको प्रायिका तथा अग्निल और पंगुनी नामक धावक युगस (श्रावक-श्राविका ) होते हैं ।।१५४२।।
कल्को राजा एक मन्त्री की पार्ताआमाए कक्किलिओ, रिणय-मोग्गे साहिऊण जनपवए ।
सो कोई गरिव मनुओ, बो मम एवं बस सि 'मंतिवरे ॥१५४३॥
मर्ष:-वह कल्की माज्ञासे अपने योग्य जनपर्दोको सिंच (जीस ) कर कहता है कि हे मन्निवर ! ऐसा कोई पुरुष सरे तारिलेको मेरे को सामील - RINEETTES
ग्रह विमबिति मती, सामिय एक्को भुनी वसो गरिय । तत्तो भणेवि काकी, कहह रिसी करिसायारो ॥१५४४|| सचिवा' बंति सामिय, सयल-पहिसावदाण आधारो। संतो विमोक्क - संगो, 'सणुद्वाण - कारणेण पुनी ३१५४५।। पर • घर'- दुबारएम, ममहे काय वरिसर्ण किच्चा।।
पासुयमसन' भुजवि, पाणिपुरे विग्ध" - परिहोणं ॥१५४६॥
म: तय मन्त्री निवेदन करते है कि हे स्वामिन् ! एक मुनि मापके बशमें नहीं है। तब कल्को कहता है कि कहो उस ऋषिका कंम्रा स्वरूप है ? तब सचिव (मन्त्री) कहते है कि हे स्वामिन ! सकल-अहिंसावतोंका आधारभूत वह मुनि परिग्रहसे रहित होता हमा शरीरको स्थिति ( माहार ) निमित्त दूसरोंके घर-द्वारों पर शरीरको दिखाकर माध्याल्लु-कालमें मपने हस्तपुट में विन-रहित प्रामुक बाहार ग्रहण करता है ।।१५४४-१५४६।।
....... उ. मिवारण।। २. द. 4, मम्बिदत्ति, क. . 4. ३, मग्मिपाति । 1- . प्रतिपुरणे, ..क.प, य. ३, मंतिपुरे । ... .ज. य, सामय । १. व.., य, विमामा.क.उ.बिएणीमायो। ६.ब.प.म.न. . उ. सपियो। ५...... . तनवासा | ८.१.प.क.. य.उ.पर। ..... य. मसएं बि .क. र. ममएहि । ....... प. प. उ. विष्षु ।