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तिलोयपातो [ गाथा : १५३७-१५४१ :-दुषमा कालके दोषसे सभी धमोंका परित्याग करते हए पत्रान युक्त, परदारासत मोर कुल-हीन राजा प्रजाका पालन करते हैं ।।१५३६।।
देवादिकोंके आनेका निधअत्तो धारण - मुगिणो, देवा विम्बाहरा पनायेति ।
संबम • गुमाहियाणं, मयान बिराम योसेन ।।१५३७।।
मपं :-इस दुःश्माकाल में संयम-गुणसे विशिष्ट मनुष्यों के विराम दोष ( उनके अभाव ) के.कारण बारादिधारी मुनि, देव और विद्याधर भी नहीं गाते हैं ॥१५३७॥
जनपदमें उत्पन्न होने वाली बाधाएँआविष्टि - अनाबिहि, तमसर-परस-ससम-पहुकोहि । सम्मान समपवान, माथा चप्पाजो बिसमा ॥१५३८।।
म :-( इस दुषमा-कालमें ) पतिवृष्टि, अनावृष्टि, पोर, परचक्र ( श) एवं (सेतमें हानि पहुंचाने वाले) कौडों प्रादिसे सभी जनपदोंके लिए विषम बाधा उत्पन्न होती जाती है ।।१५॥
पापी-प्रभृति मनुष्योंको बहुलताशाल-सबर यात्रा, पुलिद-माहल-चिला' - पीलो । वीसति गरा बहबा, पुन्य • णिव हि पाहि ।।१५३६॥ बोनागाहा कूरा, गानाविह - बाहि - यणा - वृत्ता। सम्पर • करंक - हत्या, संतर • गमेण संतता ॥१५४०।।
:-उस समय पूर्वमें बांधे हुए पापोंके उदयसे रण्डाल, शवर, वपत्र, पुनिन्द, साहस (म्लेच्छ विशेष ) और किरात लादि; दोम, ममाप, क्रूर पौर नामा प्रकारको ध्याषि एवं वेदनासे मुक्त; हापोंमें खप्पर 6षा भिक्षापात्र लिए हुए मोर पेशाम्सर-गमनसे सम्तप्त बहुतसे मनुष्य दिखते हैं ॥१५३-१४०||
अन्तिम कल्की एवं प्रग्निम पासिंघसंघका निर्देशएवं दुस्सम - कासे, होमते धाम • पार - उस्याती। प्रते विसम - सहाओ, उप्पामगि एकवीसमो कस्की ।।१५४६||
१.. पिसारा, ब. क. प. उ, बिमाण, प. विन।