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गावा । १२-१५३६ ] पउत्थो महाहियारो
[ we :-स कालमें मनुष्य कुल कमागत शोस, सत्य, बल, तेज तथा पपाषं ज्ञान प्रादि गुणों से हीन पुरुषों की सेवा करते हैं प्रतः सुख प्राप्त नहीं करते ।।१५३१||
उच्चकुलको भी दूषित करनामिच्छत-मोहे बिसम्मिततो,मायाए भीपीए गरा प णारी।
मम्मान-सम्मादि म ते गणते, गोता तुंगार विसर्यते ॥१५३२॥
म:-इस वियम कालमें मिथ्याव मोर मोहमें ग्रस्त नर-नारी माया एवं भयके कारण मर्यादा और लम्जा को भी नहीं गिनते हैं मोर इसी कारणसे वे मपने उच्चगोत्र को भी दूषित करते है ॥१५३२॥
असहिष्णूताको मूतिरागेन मेग मोबपेग, संजुक्त - चिता बिनयेण होगा।
कोहेन लोहेन किमिसमागा, कोवानवा होति मसूय-काया ॥१५३३॥
भ:-इस कालमें विनयसे होन एवं घिन्तासे युक्त मनुष्य राग, दम्भ, मद, कोष एवं सोमसे सेक्षित होते हुए निर्दयता एवं पूर्व को ही मूति हो१२ टिल
चारित्रका परित्यागसंगेण पाषाविह - संकिलेसु, देगेण धोरेण परिग्रहेणं ।
असत-मोहेण व मन्जमाणा, परिस-मुग्झति मवेत्र केई ।।१५३४।।
प:-परिग्रहको तोष मासक्तिसे तथा अत्यन्त मोहसे एवं भदके वेगसे अनेक प्रकारके संक्लेजोंमें दूबते हए कितने ही जीव चारित्रको छोड़ देते हैं ।।१५३१।
___ उस्सेघ एवं आयु सादिकी हीनताउन्हमाल-पाल-चोरियावि, समपि हाएवि कमेग ताम्।
पापेग जोति विवेक-होगा, सेयं णसेमं ण विचारपंति ॥१५३४॥
च:-इस पुषमाकासमें मनुष्योंका उस्सेघ, मायु, बस एवं वीर्य प्रादि सभी क्रमशः हीनहोग होते जाते हैं तथा विवेकहीन प्राणी श्रेय-प्रयका विचार नहीं करते हैं मोर पापसे ही जीते है । अर्थात् पापाचरण करते हुए ही जीवन यापन करते हैं । १५३५॥
कुल होन राजाअणाग-वृत्ताकुल-हीन-राजा, पालंति भूमि परवार-रता । सष्येण धम्मेण विमुषमाणा, कालस्स बोसेस य समस्त ।।१५३६॥