________________
४२ ]
तिसोयपासो [ गाथा : १५२५-१५३१
___धर्भ प्रवृत्ति हानि-- तत्तो थोवे बासे', समउम्मो पपट्ट िनमाणं ।
कमसो दिवसे विषसे, काल • महम्पेण हाएवे ।।१५२७॥
एवं :--इसके पश्चात् कुछ वर्षों तक लोगोंमें समीयोन घमंकी प्रवृत्ति रहती है। फिर क्रमशः कालके माहारम्पसे वह प्रतिदिन हीन होतो जाती है ।।१५२७।।।।
कल्को एवं उपस्कियोंका समय एवं प्रमाणएवं वस्स - सहस्से, पुह - पुह काकी हवेदि एकेको ।
पंच - सम - बच्चरेस, 'एस्केलको तह म उमरको ॥१५२८।।
पर्व:-इसप्रकार एक-एक हजार वर्षोंके पश्चात् पृथक्-पृथक् एक-एक कल्की सपा पांचपषिसो वर्षोंके पश्चात् एक-एक उपकल्की होता
ह
ट
starrer in पश्यम कासके दुष्प्रभावोंका संक्षिप्त निर्देश प्रत्येक कल्कोके समय साधुको पवधिनान एवं
चातुर्वर्ण्य संघका प्रमाणकक्कि पडि एपके स्के, गुस्सम - साहुस्स ओहिनाणं पि । संघा य चावण्या, थोडा जायंति तत्काले ॥१५२६॥
:-प्रत्येक कल्को प्रति पुषमाकालवी एक-एक साधुको मनिप्लान होता है और उसके समयमें चातुर्वर्ण्य संघ भी अस्प हो जाते है ।।१५२६।।
नाना प्रकारके उपसर्गबुसमम्मी प्रोसहियो, जायते पोरसामो सम्बायो।
बह • वाओ पोर-रावल अरि - मारी घोर - उपसग्गा ॥१३॥
भर्ष:-दुःपम काल ( के प्रारम्भ ) में सभी मौषधियाँ ( वनस्पतियां ) नीरस हो जाती है सबा गोर, राजकुल, शत्र, भारी आदि अनेक प्रकारके छोर उपसर्ग होने लगते हैं ।।११३०॥
दुःख प्राप्तिका कारण
इज्वप्वा
सोलेग सम्मेण बलेग बोहम्मत्तीए एप कुलपमेणं ।
बिमाषीहि गुणेहि मुक्का, सेवंति मिच्न सुहं महते ॥१५३१।। १. प. ब. क. र. य. २. बासी। २, 4. उ. को।