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TAR५२३- Hit हो: माहिर
[ ४४॥ प: आचारानधरोंके परमात् दोसौ पचत्तर वर्षों के व्यसोत हो जाने पर नरपतिको पट्टराधा गया पा ।।१५२२।।
। ६८३+२७५+४२१.०० वर्ष । दिगम्बर मुनिराजों पर शुल्क ( टेक्स ) एवं उन्हें भवधिज्ञानबह साहिऊण कपको, णिय - जोगे' जनपये पयत्तेण ।
सुरकं 'जाधषि सुखो, पिरणं' भाष सममानो ॥१५२३॥
मई:-तदनन्सर वह फल्की प्रयल-पूर्वक अपने योग्य जनपदोंको सिद्ध करके लोभको प्राप्त होता हुमा मुनिराओंके माहारमेंसे भी मन-पिण्ड ( प्रथम ग्रास) को शुल्क (कर) स्वरूप भागने लगा ॥१५२३॥
वाणं पिंडरगं, समगा का प्रतरामं पि ।
गमयति प्रोहिणाणं, उप्पज्जपि तेसु एकस्मि ॥१५२४।।
अर्थ:-तब श्रमण ( भुनि ) अग्रपिण्ड देकर मोर अन्तराय करके [ निराहार ] चले जाते है। उप्त समय उनमेंसे किसी एक बमरण को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है ।।१५२४।।
कल्कीकी मृत्यु एवं उसके पुत्रको गज्य पदआह को वि असुरवेषो', प्रोहीयो मुणि-गणाण उपसा ।
नापूर्ण तं कषिक, मारि हु पम्मोहि सि ।।१५२५॥
पर्व:-इसके पश्चात् कोई अमुरदेव अबभिशामसे मुनिगणों के उपसर्वको जानकर एवं उस कल्कीको धर्म-द्रोही मानकर मार डालता है ।१५२५॥
कश्कि-सुबो 'अजिवंजय बामो रमन ति एमबितन्दर।
तं रस्सदि असुरोमो, धम्मे ररुषं करेका ति ५२६॥
प्र :--तब अजितजय नामक सस कल्कीका पुत्र रक्षा करो' इस प्रकार कहकर उस देवके चरणों में नमस्कार करता है और वह देश 'धर्म पूर्वक राज्य करो' इस प्रकार कहकर उसकी रक्षा करता है ॥१५२६॥
....क.अ. य. उ. जोगा। २. र. 4, क. अ... आदि।...... क. प. प. उ. पिण ४.. ब. क.ज.य. उ. एककपि । ५. ६. ...... पसुरवेश। . 4. ब. क. प.व, .मचिपसामो।