SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३४ तिलोयपष्णती [ गाथा : १४६७-१५.. :-इन पाषों श्रुतफेवासियोंका सम्पूर्ण काम मिन्ना देभेपर सौ वर्ष होता है। पापों श्रुतवमीके पश्चात् भरतक्षेत्रमें फिर कोई श्रुतकेवली नहीं हुआ ॥१४६६॥ ! कोदह पूर्वधारियोंका कवन समाप्त हुना। __ दसपूर्वभारी एवं उनका कासपामो विशाहलामो, पोल्लिो तिमो नमो खागो । सिद्धत्यो बिरिसेगो, विनायो पुडिल्ल - गंगवा य ।।१४६४॥ एकरसोय सुषम्मो, रसपुम्बारा इमे सुविताया। पारंपरिओबगो', सेतीवि सयंक ताण वासामि ॥१४॥ म:-(प्रथम ) विकास, प्रोष्टिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, भूतिपेण, विषय, बुदिल, गङ्गदेव और सुधर्म, ये ग्यारह पाषायं स पूर्णधारो विस्शत हुए है। परम्परासे प्राप्त इन सबका कास एकसौ तेरासो वर्ष प्रमाण है ।।१४६७-१४६।। सम्वेस वि काल - वसा, तेसु पस भरह - खेसम्मि । बियसंत-अब-कमला', ण सति सपष्वि - विषसयरा ॥१४६६।। । रसपुम्दी गा। म :-काशके वश उन सब श्रुतकेवलियों के प्रतीत हो जाने पर भरतक्षेत्र में भम्यरूपी कमलोंको विकसित करने वाले दस पूर्वपररूप सूर्य फिर नहीं ( उदित ) रहे ||१४६९l । दसपूर्थियोंका कथन समाप्त हुआ । ग्यारह-प्रङ्गधारी एवं उनफा फालतरलतो जपपालो, पंडप'- अपसेच • कंस- आइरिया । एक्कारसंगधारी, पंग इमे वीर - तित्यम्मि ॥१५००।। प:-लसत्र, अयपाल, पाण्ड, ध्र बसेन और कंस, ये पांच मार्य वीर जिनेन्द्र तोध में ग्यारह अङ्ग पारो हुए है ।।१५००॥ - - - - --- - १. ब.क.प. य. . पारपरिमोवामयो। २. ... कामाणि ।। ६. परमघुसेग, ब.उ, परसोरण, क, ज. य. पं रघुगण ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy