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ए भार मवधिमानिया,
गाथा : १४६२-४१६ ] पत्यो महाहियारो
[ ४३३ ':. केवलशानियों में अन्तिम केवली श्रीधर कुणालगिरिसे सिद्ध हुए मोर चारणऋषियोंमें सुपावचन्द्र नामक ऋषि अन्तिम हुए।।१४६१॥
पण सपनेसु चरिमो, बहरजसो नाम ओहि-माणीतु' । परिमो सिरि - गामो सुर-पिरणय-सुसोलावि-संपम्पो IIYE२||
ज्ञानमगोमें यम सुशीलादिसे सम्पन्न श्री नामक ऋषि अन्तमें हुए हैं ॥१४६२।।
मडा-परेसुपरिमो, जिमविक परवि वगुत्तोप।
तो मउवषरा 'दु - पम्प गरे गेन्हति ॥१४ ॥
प':-मुकुटधरोंमें अन्तिम जिमदीक्षा चन्द्रगुप्सने धारण की। इसके पश्चात् किसी मुकुटधारीने प्रवज्या ग्रहण नहीं को ॥१४९३।।
चौदहपूर्व-धारियोंके नाम एवं उनके कालका प्रमाणाएवी य रणविमिती, विवियो "अपराजिसे तइजो य । गोषणो बउलो, पंचममो भहबाहु ति ॥१४॥ पंच हमे पुरिसबरा, घोडसपुम्बी जामि विक्सावा ।
से पारस - गवरा, तिर सिरिवाहमागस्स ।।१४६५॥
प:-प्रपम नन्दी, द्वितीय नन्दिमित्र, तृतीय अपराजित. पतुषं गोवर्षन और पम्पम भववाह, इसप्रकार ये पोच पुरुषोत्तम जगमें 'चौदह पूर्वी" इस नामसे बिल्यात हुए। बारह बंगों के घारक ये पांचों श्रुतकेवलो श्रीवर्षमान स्वामीके तीर्घमें हुए है ११४१४-१४६५।।
पंचा मिलिवाणं, काल - पमाणं होवि वास-सबं । पीम्मि' 4 पंचमए, भरहे सबकेवलो परिव १६॥
। १००। ।चोदसपुष्धी गवा ।
१. २. ब.क. ज.म.उ. वापिसा । २. ..परिवि। ...... प. य. . दो। ४. ... न, मवराजिता माई, क. प्रवराजि सई जावा, प. बरावि तहलाया। ५. ६.ब. क. ज.. स. वीराम ।