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तिलोयपणसी
[ गाँवा : १४५७ - १४६१
अर्थ:-बीर जिनेन्द्रका निर्वाण होनेके पश्चात् सीन वर्ष, आठ मास और एक पक्ष व्यतीत हो जाने पर दुःधमाकाल प्रवेश करता है ।। १४८६ ॥
४३२]
तप्पम - 'पवेसम्म य, बीसाहिए- इगिन्सर्व पि परमाऊ ।
संग
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हत्यो उस्सेहो, जराण चरबीस पुट्टी ॥। १४८७॥
था १२० । ७ १२४ ।
- इस दुःपमाकालके प्रथम प्रवेशमें मनुष्योंकी उत्कृष्ट आयु एक सौ बीस वर्ष, ऊँचाई सात हाथ और पृष्ठ भागको इंडिया तिहत
गीतमादि अनुबद्ध केवलियों का निर्देश -
मुम्मसामी
जादो सिद्धो वोरो, तदिवसे गोवभो परम - णाली । जादो तस्स सिद्धे तम्मि कब सम्म मासे, बंबूसामि ति तत्म वि सिद्धि पवन्मे, केबलिनो गरिब अनुबद्धा ।।१४६६ ॥
तो जादो ॥१४८८ ।। केवली जाो ।
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वयं :- जिस दिन भगवान् महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गोतम गणधर केवलज्ञानको प्राप्त हुए। पुनः गौतमके सिद्ध होने पर सुधर्मस्वामी केवली हुए । सुधर्मस्वामीके कर्मनाश करने ( मुक्त होने ) पर जम्बूस्वामी केवली हुए। जम्बूस्वामी के सिद्ध होनेके पश्चात् फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुआ ।। १४८६- १४८६।।
गोसमादि अनुबद्ध केवलियोंका धर्म-प्रवर्तकाल -
बासी वासामि गोवम
無
पयकूण
काले
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पहुवीण नामवंताखं ।
परिमार्ज पिट - स्वेनं ।। १४९० ॥
। च ६२ ।
अर्थ :- गौतमादिक (गौतम गणधर सूधर्मस्वामी और जम्बूस्वामी ) केवलियोंके धर्मप्रवर्तन-कालका प्रमाण पिण्डरूपसे बासठ वर्ष प्रमाण है ।। १४९०।
अन्तिम केवलो, चारण ऋद्धिचारी प्रशाश्रमण और अवधिमानी आदिका निरूपण
कु' बलगिरिम्स परियो, केवलनाणोस सिरिधरो सिद्धो । चारपरिसीसु
चरिमो
सुपादाभिहान
१. व.ब.क. ज. प देसि मवियप परे सोम्यथ । "
च ।। १४९१ ।।