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उत्थो महाहियारी
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:-रुद्रों के सहरा अतिरोद्र ये सब नारद पापकै निधान होते हैं कलहप्रिय एवं युद्ध-प्रिय
गाथा । १४८३-१४८६ ]
होनेसे वासुदेवोंके समान ही ये भी नरकको प्राप्त हुए हैं ।। १४६२ ।।
उस्सेह आउ सिस्यक्रखेव पश्ब्रक्स - भाब-पणीसु ।
एवान
गारव
उबएस
। गारवा गया ।
भ्रमं :- छन नारदोंको ऊँचाई, धातु और नोकर देवोंके ( प्रति ) प्रत्यक्ष - भावादिकके विषय में हमारे लिए उपदेश नष्ट हो चुका है ।।१४८३॥
| नारदका कथन ममाप्त हुआ ।
कामदेवोंका निर्देश -
काले जिणवरानं चडवीसाणं हवंति घडवीसा | से बाहुबल
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अर्थ :- चोबीस तीर्थकरों के काल में अनुपम आकृतिके धारक वे बाहुबलि प्रमुख चौबीस कामदेव होते है ।। १४८४ ॥
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॥ कामदेवोंका कथन समाप्त हुआ ||
१६० महापुरुषका मोक्षपद निर्देश—
सुहा, कंदप्पा जिरुवमायारा |११४६४॥ | कामदेवं गदं ।
तिस्वयरा लग्गुरो, चक्की-ल केसि
मारहा
अंगज कुलयर पुरिसा, भव्षा सिज्ांति नियमे २१४८५।।
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शिध्वाणे वीर जिणे, वास इस पंचमलो, दुस्लम
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बलदेव ( ६ ),
: - तीर्थकर (२४) उनके गुरुजन ( माता-पिता २४ + २४ ) वर्ती ( १२ ). नारायण ), रुद्र (११), नारद (E), कामदेव (२४) और कुलकर (१४) ये सब ( १६० ) भव्य पुरुष नियमसे सिद्ध होते हैं । २१४८५ ।।
दुखमा कालका प्रवेश एवं उसमें घायु धादिका प्रमाल
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लिये अटु-मास-पन्डे ।
कालो समल्लियवि ।। १४८६॥