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गादा : -१३६६ पउत्पो महाहियारो
[ ४०१ प्र:-चक्रवतियोंने बालरोंको बत्तीस पक्ष दुराया करते है। सपा प्रत्येक ( यक्ष) के बन्धुकुमका प्रमाए साडे तीन करोड होता है ।।१३६५।।
काल-महकालपंडू, माशय-संसा य परम - गइसप्पा । पिंगल - पाचारयना, ना - मिहिको सिरिपुरे बाग ।। १३९६॥
प्रबं:- काल, महाकाल, पाण्ड, मानव, शक, पत्र, नसर्प, पिङ्गस और नानारल, ये नौ निधियां श्रीपुरमें उत्पन्न हुआ करती है ।।१३९६।।
काल-पमुहा गाना - रयणता से गई - गृहे मिहिनो। उप्पज्जवि इदि केई, पुवाइरिया पहवेति ॥१३६७।।
[पाठान्तरम् ] मय:-कालनिधिको बादि लेकर नानारत्न-पर्यन्त वे निषिया नमी मुख में उत्पन्न होती है, इसप्रकार भी कितने ही पूर्वाचार्य निरूपण करते है ।१३६७।।
(पाठान्तर)
उद्धोग्ग-बब-भायण-घषणाउह-पूर-वस्थ - हम्माणि ।
आभरण-रयन गियरा, स्व - लिहिलो नति' परोयं ॥१३९।।
wi:-इन नौ निधियों से प्रत्येक निधि क्रमश: ऋतुके योग्य प्रव्य, भाजन, धान्य, मायुध, वाक्षित्र, वस्त्र, हम्यं, पाभरण और रत्नसमूहोंको दिया करती है ।।१३६८।।
शक्विन मुह आवत्ता, पउदीस हवंति अवस-पर-संखा । एके - पकोडी लालो, हलागि पुढची बिया ॥१३९६।।
।सं २४ 1 हल को १ न ।६।
प:-चक्रवतियोंके ( अधिकारमें ) चौबीस दशियमुखापतं धवल एवं उसम शल एक साल करोड (१०००००००००००० ) हल पोर छह समस्प पृथिवी होती है ।।१३६६॥
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प. य. दिति । २. य. उ. चित्प।