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तिलोयपम्पत्तो [ गाषा : १३६१-१३९५ छत्सासि-पंच-परका, काफिणि-वितामणि ति स्यनाई।
पम्म - रय व सराम, जय शिम्मीवाणि रयपाणि ।।१३६१॥
पर्य :-छत्र, असि, दण्ड, चक्र, काकिणी, चिन्तामणि भौर चर्म, ये सात रन निर्जीव होते है ।।१३ मा .... आमा !
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आदिम-रयरण-घउपकं, आपुह-साला जाय तो । तिमि वि रयणा पुलं, सिरिगिहे ताण जाम मे ॥१३२॥
म:-इनमेंसे भादिके पार ररन वायुधशालामें और शेष तीन रन थीगृहमें उत्पन्न होते हैं. उन सातों रत्नों के नाम इसप्रकार है ।।१३६२।।
सूरम्पह • मूवमुही, परवेगा सुपरिसणो तरिमो। पिताजणगो गमणि मग्मामओ सि पते ॥१३९३।।
म :-सूर्यप्रभ ( छत्र ), भूतमुख ( मसि ), प्रचणवेग (द ), सुदर्शन ( ब ), चिन्ताबननी ( काकिणी दोपिका ), एडामणि ( चिन्तामणि ) भौर मउममय (धर्मरत्न ) ये कमशः (नाम ) कहे गये हैं ।।१३९३॥
बह बह जोगवाणे, उप्पाला भोइसार रयमाई । विकेई प्रायरिया, मियम - समग ममति ॥१३६४||
[पाठान्तरम् ] :-ये पौदह रत्न यपायोग्य स्थानमें उत्पन्न होते हैं। इसप्रकार कोई-कोई आचार्य इनके नियम रूपको नहीं भी मानते हैं ।।१३९४||
(पाठान्तर) चपकोख चामरागि, नाला बत्तीस विपिसबंति तहा । आउट्टा कोसीओ, परोपक बंधु • कुल - मानं ।।१३६५।।
।३२ ! ३५००००००।
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... त, उपदे, ज.य, पोतो , . दे तत्तो।