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हिसोयपगत्तो
[ गापा : १३८२-१३८५ :-अब अपने-अपने नगरों में लोसासे रमण करते हुए उन चक्रवतियोंके वैभवफा यहाँ अनुक्रमसे किंचित् मात्र कपन करता हूं ।।१३।।
आदिम संहरमनवा, सचे तबगिज-यम-वरमहा । सयत - सुलालच - भरिया', 'समचरमसंग-संठाणा ॥१३८२।।
प:-सर्व पक्रवर्ती भादिके बजवृषभनाराच संहनन सहित, सुवर्ण सदश वर्ण बासे, उत्तम शरीरके धारक, सम्पूर्ण सुलक्षणोंसे समन्वित पोर समचतुरस्त्रस्प सरीर-संस्थानसे संयुक्त होते हैं ॥ १२॥
सवानो मग : हरायो, अहिलव-लावण-रूप-रेहाओ। अनादि • सहस्साई, पत्तो होति अगदीनी ॥१३८३॥
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प्रपं:-प्रत्येक चक्रवर्तक, मनको हरण करने पासी और अभिनव लावण्य-रूप रेखाबाली कुम समानव हजार मुथतियाँ ( स्त्रियाँ ) होती हैं ।।१३८३।।
तास प्रजाख, बत्तीस - सहस्स - रामकाजाओ। लेबरराज - सुवानो, तेत्तिय • मेत्ताओ मेच्छ-पूबानो ॥१२५४॥
। ३२००० । ३२... । ३२० । पर्व:-उनमेंसे बत्तीस हजार राजकन्याएं प्रार्यकरसकी इतनी ( ३२००० हो सताएं विद्याधर राजरानोंकी पौर तनी ( ३२००.) ही म्लेच्छ-कन्याएं होती हैं ।।१३८४॥
एकेक - जुबइ • रयम, एककेक्काम होवि वालोणं । भुति र तेहि सम, संकप्प • वसंगई सोम ॥१३८५।।
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म :- प्रत्येक चक्रवर्तीके एक-एक पुवति-रत्न होता है। वे उसके साथ संकल्पित (इन्छित ) सुखोंको भोगते हैं ।।१३८५।।
-... -- ...-.-- -- 1.क.प. म. उमरियं । २. प. ब. क. ज. प. प. समारंगरम ।