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गाचा । १३७८-१५८१ ] उरवो महाहियारो
[ ३६७ म:-पुन: सेनापति चक्रवर्तीको आशा छ मासमें पूर्व म्लेग्मबाडको भी वध करके स्कन्धावारमें मा मिलता है ।।१३७७।।
सम्मिरि-यण-बीए, तोरण - दारेण पक्लिग - बहेन ।
निक्कलिय चाकरही, णिम - लिय - गयरेस परिसंति ॥१३७।।
प्रबं:-अनन्तर चक्रवर्ती उस पर्वतको वन-वेदीक दक्षिणमुख तोरण-द्वारसे निकलकर अपने-अपने मगरोंमें प्रवेषा करते हैं ।।१३७८।।
चकवतियों का दिग्विजय काससट्रितीसं वस बस, वास - सहस्सा सलक्कुमार।
पर छप्पण पड़ ति - सया, कमेण ततो य पठमंतं ।।१३७६ ।। ६०००० । ३००००।१०००.1 १०००० । ८०० । ६०० । ५०० 1 100 1 ३०० ।
पणभाहय समय हरिसेन - प्पमुहाणं, परिमाणं विजय - कालस्म ॥१८॥
१५०।१०।१६। । एवं चकहराणं विजय-कालो 'समची।
प:-(भरत चक्रवर्सीस ) सनत्कुमार पर्यन्त विजय-कालका प्रमाण क्रमश: साठ हजार, सीस हजार, दस हजार, दस हजार, सपा पप चकरा पर्यन्त क्रमश: आठ सो, छह सौ पांच स्रो, पारसौभौर तीनसौ वर्ष है। पुनः हरिषेणादिक पतियोंमेंसे प्रत्येकका ममाः एक मो पचास, एक सौ और सोलह वर्ष ही है ॥१३७६-१३८०॥
। इसप्रकार चक्रधरोंके विजयकासका वर्णन समाप्त हुना।
चक्रवतियोंके वैभवका निर्देशसह णिय-जिय-जयरेसु, पक्षीय रमंतयाग सोलाए । विभवस्त य लब - मेस, बोच्छामि जहागपुवीए ॥
११॥
...ब.क. ज. य. व. काम समता। २.१.प.क. न. म. न. बीभत्स ।।