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गापा : १३६७-१३७२ ] पजत्यो महाहियारो
[ ३६५ खपहप्रपातगुफाका उदघाटन एवं उत्तरभरतपर विनयअह बक्षिण - भाएरणं, गंगा - सरियाए तोर - मोग।
गंतुणं बेहते, घेयड्ड - वणमि चमकहरा ।।१३६७।। प्रभ :- - Rar-
resiaमासे इति की ओर जाकर विजयाध-पर्वतके वनमें ठहर आते हैं ।।१३६७।।
आमाए धपकोणं, संधानहाए कबार - अगलं पि। उग्धाडिय सेयबई, पुष्वं पिच मेच्या पि ॥१३६८।। साहिय ततो पविसिय, संपाबारं पसण्य - भत्त • मणा ।
चमकोण घरण - कमले, पर्णामय चे? वि सेनबाई ॥१३६६॥
प्रबं:-पुनः चक्रवर्तीको आशासे सेनापति खण्डप्रपातगुफाके दोनों कपाट बोलकर और पूर्व म्लेच्छ सण्डको मौ वश करके वहाँसे कदकमें प्रवेश करता है तया प्रसन्नमन एवं भक्तिमान होकर पक्रवर्तीके चरण-कमलोंमें प्रणाम करके ठहर जाता है ।।१३६८-१३६६ ।।
बेय - उत्तर - दिसा-ठिय-जयराण खपररामा' य ।
पाकोरण वलण - कमले, पनमंति फुर्णति दास ॥१३७०।।
म :-विजयाको उत्तरदिशामें स्थित नगरोंके विद्याधर राजा भी चक्रवर्ती बरणाकमलोंमें नमस्कार करते हैं मोर उमका दासत्व स्वीकार कर लेते हैं ।। १३७०।।
ज्य उत्तरम्मि भरहे, मूबर - खचरावि साहिय समागं ।
वसति बलेन अवा, गंगाए जाव वण - वेवि ॥१५७१॥
अ :--इसप्रकार चक्रवर्ती उत्तर भरतमें सम्पूर्ण भूमिगोधरी (राजामों) और विद्याघरोंको बसमें करके सैन्य सहित गङ्गाको दन वेदो तक जाते हैं ॥१३७१।।
झण्डप्रपातगुफाके दक्षिणहारसे निकाशनहन्दीए गरे, सीए उपक्षण • खिोम लोलाए । पविसिय बलं समग्गं, णिक्कामादि सक्सिण - मुहेण ॥१३७२।।
१... रायाए ।