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________________ ३९ :. १६४ई ? सुशिलारसी' [ गावा : १३५१-१३५५ म:-तब देवोंके उपदेशसे ( विजया ) पर्वतीय गुफाको दोनों दीवालों पर काकिणीरत्नसे शीघ्र ही पन और सूर्य-मण्डलोंके नालेख-चित्र बनाए गये ॥१३५०॥ एकेक - जोषनंतर - लिहिदाणं ताण बिति उवमोवे । बच्चेवि सरंग - बलं, उम्मग्ण - जिमग • परिपंत ॥१३५१॥ पर :-एक-एक योजनके मन्तरालसे लिखित अर्थात् अंकित उन रिम्पोंके प्रकाश देनेपर पडङ्ग-वस ( सेना ) उन्मग्न-मिमग्न मदियों तक जाता है ।।१३५१॥ ताण सरियाण गहिर, जलप्पयाहं सबर - वित्विगं । उत्सरिसु पि स सस्कइ, समल - बलं वाकट्टी ॥१३५२।। म :-उन नदियोंके दूर तक विस्तोणं और गहरे जलप्रवाहको ( पार ) उतरनेमें समवर्तीको सारी सेना समर्थ नहीं होती ।।१३५२॥ सर-तवरेस-बसेणं, वाटायमेण रयर - संकमणे । भावहदि सरंग • बसं, सानो सरियामओ उत्तरहि ॥१३५३॥ मंच':-सब देवके उपदेशसे बढ़ई-रल द्वारा पुलकी रचना करने पर पहलाल ( सेना) पुल पर पड़ता है और उन नदियोंको पार करता है ।।१३५३।। सेल - गुहाए उत्तर - गरे विस्मरेवि बल - सहियो । मह-ब-वेदि-वारे, गंतु गिरिजवपस्स मरझम्मि ॥१३५४॥ प्रबं: इसप्रकार आगे गमन करते हुए नदीके पूर्व-वेदीद्वारसे पर्वत-वनके मध्यमें पहुँचने के लिए चक्रवर्ती सैन्य-सहित विजयाधको गुफाके उत्तर द्वार से निकलता है ।।१३४॥ म्लेच्छ-खण्डोंपर विजय प्राप्त करते हुए सिन्धुदेवीको वल करनातत्प प पसाप-सोहे, णानातरु • संब- मंडले' बिउले । पितहरे चाकहरा, संषावारं निवसति ।।११५५।। - - - - - - - -- - - .....क. ब. य. अ. संगे।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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