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________________ ३९. ] तिलोयपाती [गाषा : १३४१-१३४५ . . . . ' प्रर्ष:-सी मीदियोंसे पकिंधमकी ओर जाकर, फिर दक्षिण की ओरसे सब संन्यको उतारकर मह सेनापति नदीवरके मध्य में होकर जाता है ।।१३४०॥ तसो सेनाहिवा, करपल - परिवेश र - रवणेण । पहनरि कबाब - अग, भाभाए परकबाडी ॥१४॥ :-तदनन्तर सेनाधिपति चक्रवर्तीको बानासे हस्ततलमें धारण किये हुए दण्डरत्नसे दोनों कपाटोंपर प्रहार हा ।।१३४ Tere To उग्धश्यि - कपाट - जुगसम्भंतर-पसरत-उमा-भीबीए । पारस • जोपण - मेतं. तुरंग • रयण संप्रति ॥१४२| म:-(पश्चात् वह सेनापति) कपाट-युगलको उद्घाटिठकर भीतर फली हा उष्पलताके भयसे तुरङ्ग ( मोडा ) रन द्वारा मारह योजन-प्रमाण क्षेत्रको लापता है । १३४२।। म्लेच्छु-खण्डपर विजयगंतूप पक्सिमुहो, सग-'पदबासिब-वलम्मि पविसरि । पच्या पश्चिमवयनो, सेणावई गिरिष एवि ॥१३४३।। :-वह ( सेनापति ) दक्षिणको पोर पाकर अपने प्रतिवासित सैन्यमें (पलव) प्रवेश करता है। पश्चात् वह सेनापत्ति पपिषमाभिमुख होकर पर्वतीय-वनको जाता है ।।१४ बक्मिणमुहेण सतो, गिरि - बम - बेबीए सोरनहारे । निस्सरिय मेच्छाव, साहेवि' य बाहिणी गुत्तो ।।१३४४।। पर्ष:-पश्चात् दक्षिणमुख होकर पर्वतीय वन-वेदीके तोरणद्वारमेसे निकलकर सेन्यसे संयुक्त होता हुआ वह म्लेच्छमण्डको सिद्ध करता है ।।१३४४।। सम्बे घमासेहि. मेच्छ - मरिया बसम्म कारम् । एवि पुष्य • पहेण, बेयगृहाए सर - परियत ॥१३४५॥ १. .. पढ़िवासिन, २. क. ब. य. उ. पनगासिर । २... क. न. सामादि पदाहिणं, ६. प. य. नामोदि पवाहिणं । ३. इ.स. . . . . एदे।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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