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________________ गापा : १३१६-११४० ] पस्यो महाहियारी [ ३९ प्र :-उस पर्वतके दक्षिणभापमें स्थित पचास नगरोंके विवापर-समूहोंको सिद्ध करके पूर्वोक्त तोरण-द्वारसे वापिस पाते हैं ।।१३३२॥ कृतमालको वश करनासत्तो सम्बन • बेषि, परिपूर्ण एदि पश्चिमाहिमुहा । सिंधम-वेवि-पासे, पदिसते तरिगरिस्स विश्व - वगं ।।१३३६॥ प :-इसके प्रागे उस वन-वेदोका आश्रय करके पश्चिमझी बोर जाते हैं और सिन्धुवनवेदीके पासमें उस पर्वतके दिव्य षनमें प्रवेश करते हैं ॥१३३६॥ । साहे समिरि - बासी, मालो नाम सरो यो । प्रागंद्रनं पागिरि - बार कवार - फेडणोपायं ॥१३३७॥ भ:-तब उस पर्वत पर रहनेवासा कृतमाल नामक व्यन्तरदेव आ-करके विजमाय. पर्वतके द्वार-कपाट बोलमेंका उपाप [गतसाता है ] ||१३३७।। तिमिसगुफा द्वार उद्घाटन सस्तुबवेस • बसेकं, सेप्पबई तुरग - रयण - माहिय । गहिकमड- रयन, पिस्सरवि' सांग - बल - जुसो ।।१३३८॥ :-इसके उपदेशसे सेनापति तुरग रत्नपर चटकर और दण्ड-रत्नको ग्रहणकर पातबल सहित निकलता है ।।१३३८॥ सिपु-गन-रि-बार, परिसिय गिरि-रि-तोरमबारे । गच्छिम तिमिसगुहाए. सोपाने पनि बल - गुतो ॥१३३६॥ :--वह सिन्धुवन-वेदीके द्वारमें प्रवेशकर पर्नसीप वेदीके तोरणद्वारमें होकर सैन्यसहित तिमिमगुफाकी सीढ़ियोंपर चढ़ता है ।।१३३६॥ अवराहिमुहे पक्छिय, सोशण - सएहि बक्सिन-सुहेग । उत्सारिय' सयस-बल पनि सरि - बणस्स मजमेण ॥११४०।। १. प. विम्भरदि। १.१.१.क. प. य. उ. बाधि। ३.६, ब...यहै. उत्सोदिय ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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