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________________ ३८८] तिलोयपत्ती वैताच वेग एवं विद्याधरों पर विजय सत्तो गुम्बाहिमुहा पीबोववगस्स बार सोकानं । चडिगं वण मज्ने, वसंत उनसहि सीमं ।। १३३० ।। - :- - वहाँसे पूर्वाभिमुख होकर ट्रोपोपवनके द्वारकी सीढ़ियोंपर चढ़कर उनके मध्य मेंसे उपसमुद्री सीमा तक जाते हैं ।। १३३० ।। तप्पणिधिदेवि-दारे, पंसंग-बलानि तानि निस्सरिया । सरितीरेण चलंते, वेपतगिरिस जाव वरण- वेबि १११३३१॥ :- समुद्र के समीप बेदिका तक नदी किनारे-किनारे जाते हैं ।। १३३३ ।। ततो सम्म देवि जनिं बंति पुष्य विभाए । गिरिमझिम- कूट-यनिधिम्मि · [ गाथा १३३० - १३३५ - - म :- फिर इसके आगे उस बन वेदीका आश्रय करके पूर्व दिशाने उस पर्वतके मध्यमकटके समीप बेदी द्वारपर्यन्त जाते हैं ।। १३३२ ।। तहारेवं पविलिय, वन पक्के बंति उत्तराहिमुहा । रजवाचलय, पाविय सीए वि भेटूति ॥१३१३।। - हैं और विजयार्धके तरकी वे पाकर वहीं पर ठहर जाते हैं ।। १३३३ ।। बेदि-वार-परियं ।। १३३२ ।। प :- पश्चात् उस बेदी द्वारसे प्रविष्ट होकर वनके मध्यमेसे उत्तरकी बोर गमन करते - गिरिको वन - तारे' लग्गिरिमझिम कूडे पेय बॅतरो नाम । प्रागंग भय बियलो, पर्णामय चक्कीण पइसरइ ।। १३३४ ।। - अर्थ :- उस समय विजयागिरिके मध्यम कूटपर रहने वाला वैताच नामक व्यन्तरदेव पागन्तुक मयसे विकल होता हुआ प्रणाम करके कतियोंकी सेवा करता है ।। १३३४६| गरिबक्णि भागे, संख्यि-पन्नास-नयर-सपरगणा । सहय आगच्छंते, पुब्विल्लय तोरन द्वारा ।। १३३५।। १. द. व.क. न. प. उ.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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