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तिलोयपण्याती
हुंडाबसप्पिणिस्स म दोसेणं वेति' सोति ि विशाfमुहाभावे अस्यमियो धम्म बर- बोमो ।। १२६१॥
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अर्थ :-- हुण्डावसर्पिणी कालके दोषसे, वक्ताओं और श्रोताओंका विच्छेद होनेके कारण तथा दीक्षाके अभिमुख होने वालोंके अभाव में धर्म रूपी उत्तम दीपक प्रस्तमित हो गया था ।। १२९१ ।।
[ गाथा १२६१ - १२९७
भक्ति में प्रासक्त भरतादिक चक्रवतियोंका निर्देश
, मरहो, सगरो मघवो, समक्कुमारो य संति, कुरो ।
कमसो सुभोम, पमो', हरि-जयसेणा, यवतोय ।। १२९२॥
ए बारस चक्की, पच्चषख परोषा बंदणासत्ता ।
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निम्मर भशि समग्गा, सब्वानं सिल्म कसा ॥१२६३॥ अर्थ :-- भरत, सगर, मधवा, सनत्कुम, पालि कुन्यु, माइि जयसेन और ब्रह्मदत्त क्रमशः ये बारह चक्रवर्ती सर्व तो खुरोंकी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष बन्वनामें प्रासक्त तथा अत्यन्त गाढ़ - भक्तिसे परिपूर्ण रहे हैं ।। १२६२-२२६३।।
तीर्थकरों ऋतियों की प्रत्यक्षता एवं परोक्षता-रिससरस्स भरहो, सगरो अजिएसरस्स प
मघवा सनमकुमारी, दो चक्की धम्म-संति-विन्याले ।। १२६४।। असंति-कु -अरजिण, तिथयश ते च चक्करु-पट्टि ।
एक्को सुभोम चक्की, अर महली अंतरालम्मि ।। १२५ ।।
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अह पउम चक्कबट्टी, मल्ली मुनिसुव्वाण विरुवाले ।
सुव्वय गमीन मक्के, हरिसेयो नाम चक्क हरी ||१२६६ ॥
चक्क
जयसेण खक्कड, नमि- गेमि-विणानमंतरालस्मि । तह बम्बस लामो, गेम पासा ।।१२६७॥ अर्थ :- भरत चक्रवर्ती ऋषभेश्वर के समक्ष, सगर चक्रवर्ती अजितपय के समक्ष तथा मधदा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती धर्मनाथ एवं शान्तिनाथके अन्तरालमें हुए हैं। शान्तिनाथ,
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