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उस्वी महाहियारो
दुषमसुषमा कालका प्रवेश
उसह-किने निवाणे, बास तए अट्ठ मास मासखे । पोलीस पबिट्टो, डुस्समसुसमो तुरिम कालो ।।१२६७॥
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गाथा । १२६७-१२६० ]
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बामा दि १५ ।
अर्थ :- अयभूजिनेन्द्र मोक्ष-गमन पदात तीन वर्ष साठ मास और पन्द्रह दिन व्यतीत होनेपर दुषमसुषमा नामक चतुर्थकाल प्रविष्ट हुआ ॥ १२
श्रायु आदिका प्रमाण
तस्स य पढम पएसे, कोडि पुष्पाणि आउ-उबकस्तो ।
अडडाला पुट्ठी, पण सय पशुवीस वंडया उो ।।१२८६||
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पु १ को । ४८ । उ ६ ५२५ ।
अर्थ:-उस चतुर्थकालके प्रथम प्रवेवामें उत्कृष्ट प्रायु एक पूर्वकोटि, पृष्ठ भागकी हड्डिय अड़तालीस और शरीरकी ऊंचाई पाँचसी पच्चीस धनुष प्रमाण थी ।।१२८८ ।।
१.म.वि. क. य. यस
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धर्म-तोको व्युति
उच्छन्न सो धम्मो, सुविहि प्यमुहेतु 'सत्त-तिमेसु । सेसेसु सोलसेस, शिरंतरं
धम्म
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सुविधिनायको आदि लेकर (धर्मनाथ पर्यन्स) सात तीर्थों में उस धर्मकी व्युच्छित्ति हुई थी और पोष सोलह तोयोंमें धर्मको परम्परा निरन्तर रही है ।। १२६६ ।।
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पलल्स पादमद्ध' ति चरम पत्थं सु ति बरणं अ
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पहलस्स पाव मेसं वोच्छेो धम्म तिस्थस्स ।।१२६० ।
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[ ३७८
संतानं ।। १२८६ ।।
पप प प १२३ ।
वर्ष :- सात तोयोंमें क्रमशः पाव पल्प, अपस्थ, पौनपष्य, ( एक ) एल्म, पौन पल्म,
अपल्य और पाव पल्यप्रमाण धर्मशोचंका विच्छेद रहा था ।। १२६० ।।