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________________ गाया 1 ४२-४७ ] चमो महाहियारो जम्बूद्वीपके विजयाधिक चार द्वारोंका निरूपण - अवंत- मनराजिर्वच गामेहि । विजयंत-वेद्यतं, छत्तारि दुबाराई, अंबी म:-जम्बूद्वीपकी चारों दिशाओं में विजयन्त ( विजय ), वैजयन्त, जयन्त और अपरा जित नामवाले बार द्वार हैं ।। ४२ ।। चज-विसासु ं ।।४२।। . पुष्प -विसाए विजयं वक्त्रिण- प्रासाए बड़जयंतम्मि । ... भवरानिवद अबर-विसाए केन जयंत कान भ्रम :- विजयद्वार पूर्व दिशामें वैजयन्त दक्षिण दिशामें जयन्त पश्चिम दिशामें और अपराजिस द्वार उत्तर दिशा में है ।। ४३ ॥ एवाणं दारागं, पोक्कं अष्टु जोयना उदओ । उच्छेद्धवं होदि प्रवेसो वि बास- समो || ४४|| ८ । ४ । ४ | अर्थ: 1:- इन द्वारोंमेंसे प्रत्येक द्वारकी ऊँचाई आयोजन, विस्तार ऊंचाई बाधा ( चार योजन) और प्रवेश भी विस्तार के सदृश चार योजन प्रमाण है ॥ ४४ ॥ [ १३ वर- वज्ज-कबाड-जुबा, नानाविह रयण-वाम- रमणिका । "च्छिण रलिज्जते अंतर-वेहि घडवारा ||४५ ।। अर्थ :- वज्रमय उत्तम कपाटोंसे संयुक्त और नानाप्रकारके रत्नोंकी मालाओंसे रमणीय ये चारों द्वारा व्यन्तर देखोसे सदा रक्षित रहते हैं ।। ४५ ।। द्वारों पर स्थित प्रासादोंका निरूपण - वारोयरिमपएसे परोक्कं होंति दार पासादा । सत्तारह-भूमि-बा *मानावरमत्तवारणवा ||४६ || दिपंत-रयन-बीचा विविध-वर-सालभंजि- "अत्यंभा । 'घुध्वंत-षय-बडाया, विविहालेक्सेहि रमणिका ॥४७॥ ...जयं उप । ३ उ. शिक्षण । 1. T. L. 6. 7. I, govja i परान उ. जयंत मपराजयं च । २. व. व. उच्छे पट्ट. प. प. उ. YER, ET, EKLAT I 1. 4. 5. T. T. MINI, T, J. BILLI ७. म.प्र. भेदे ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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