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________________ १४] तिलोत कार्यक -- आवर्य श्री की काळ 'संबंत- रयण-माला, समंतयो विविह-धूम-धड-जुता 1 बैबाहि भरिया, पट्टसूत्र-पहुति कय-सोहा ||४६|| :- प्रत्येक द्वारकै उपरिम भाग सत्तरह भूमियोंसे संयुक्त, अनेकानेक उत्तम बरामद से सुशोभित, प्रदीप्त रत्नदीपकों से युक्त, नानाप्रकारकी उत्तम पुतलिकामोंसे अंकित स्तम्भोंबाले सहलहाती ध्वजापताकाचोंसे समन्वित, विविध आलेखोसे रमणीय, लटकती हुई रत्नमालानोंसे संयुक्त सब ओर विविध धूप घटोंसे युक्त, देवों एवं अप्पराओंसे परिपूर्ण और पट्टांशुक ( रेशमीवस्त्र } प्रादिसे शोभायमान द्वार प्रासाद है ।। ४६-४८ ॥ उह-बास-पदसुदारम्भवगाण बेतिया संज्ञा । तम्परिमाण परूवण-हवएसो [ गरबा ४८-५२ :-द्वार-भवनोंकी ऊँचाई तथा विस्तार आविका जितना प्रमाण है, उस प्रमाणके प्ररूपणका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है ।। ४९ ।। गोपुरद्वारों पर जिनबिम्ब सोह्रासण- छततय-भामडल- चामरादि-रम निम्मा । रथनमपा विण-पडिमा गोउर-वारेषु रेहति ॥५०॥ संपि मट्ठो ॥४६॥ अर्थ :- गोपुर-द्वारोंपर सिंहासन, तीन छत्र मामल और चामरादिसे रमशीय रत्नमय जिन प्रतिमाएँ सोभायमान हैं ।। ५० । जम्बूद्वीपको सूक्ष्म परिधिका प्रमाण ससि वीचे परिही, लक्ष्माणि तिम्मि सोलस-सहस्सा । जोयण-सयाणि दोणि य, सत्तावीसावि-रितानि ॥५१॥ १. नंतर माणुसता २. ड. ब. क.अ. य. जो ३१६२२७ । सयं गंगा । पावूनं जोयमयं भट्ठावीसुतरं हिकू-हत्वो "त्मि, हवेदि एक्का बिहवी व ।। ५२ ।। जो 1 वं १२८ ० ० । १ । ५. द. हिदी को हिंदी व रु. अ. वरमालासमेता व वरवासा तठायो रा..... भविया ४. प. स. घोसव. क. हवेदी एको बिहंदीई व रात्यि मेदो एकी
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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