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तिलोपस
भम्मि सम्मे ।
फरतुन किन्ह-चडल्बी अबरहे जन्म चवीसाहियतिय सय सहिदों परमम्पो देवरे ।।१२०१ ।।
फागुन- बहुलछुट्टी असुराहाए पण
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:- पद्मप्रमदेव फाल्गुन-कृष्णा चतुर्थी के अपरा अपने जन्म (चित्रा) नक्षत्रके रहते सम्मेदशिखर से तोनसौ चौबीस मुनियोंके साथ मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ।। १२०१ ॥
सय
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[ गाथा : १२०९-१२०५ :- अचार्य श्री ि
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पुन्हे पवम्मि सम्भेवे ।
तो मुसो सुवास जिलो ।। १२०२ ॥
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। ५०० ।
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प्रयं सुपाश्वंजिनेन्द्र फाल्गुन-कृष्णा पष्ठी के पूर्वा अनुराधा नक्षत्रके रहते सम्मेद पर्वत चिसो मुनियों सहित मुक्तिको प्राप्त हुए हैं ॥१२=२ ।।
सिव-सतम-पुण्य, भद्दपदे भुमि सहत्य
सु सम्मे
यह जनवरी
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६. ब. जे. उ. जुता । २. ४.ब.उ. दो
१००० ।
अर्थ :- चन्द्रप्रभ-जिनेन्द्र भाद्रपद शुक्ला सप्तमी पूर्वा ज्येष्ठा नक्षत्रके रहते एक हजार मुनियों सहित सम्मेदशिखरसे मुक्त हुए हैं ।। १२०३ ।।
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संतो । सिद्धो ।। १२०३ ॥
असद- सुक्क अटुमि अकरम्हे जम्म भम्मि सम्मे ।
मणिबर सहस्त-सहियो, सिद्धि गयो पुष्कवंत जिणो ।। १२०४ ॥
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१००० 1
अर्थ :- पुष्पदन्त जिनेन्द्र आश्विन शुक्ला अहमीके अपराह्न में अपने जन्म ( मूल ) नक्षत्र के रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साथ सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ।।१२०४।।
कचिय सुक्के पंचभिपुष्यन्हे जन्म-भम्मिम्मे । शिष्याणं संपत्तो, सोयल वेबो
साहस्स
१००० ।
जुबों ।।१२०५।।