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गाया : १२०६-५२०६] रउत्यो महाहियारी
। ३५३ भ:-शोतसनाप जिनेन्द्र कार्तिक शुक्ला पंचमीके पूर्वाहमें अपने जन्म ( पूर्वाषाढ़ा) नपात्रके रहते सम्मेदशिखरसे एक हजार मुनियोंके साप निर्माणको प्राप्त हुए हैं ॥१२०२।।
सापचय-पुगिमाए', पुम्बन्हे मुनि - सहस्स • संगुतो।। सम्मो सेपंसो, सिदि - पो भिवातु ।।१२०६॥
। १००० । प:- भगा लामाको पनि पहिले पनि क्षत्रके रहते सम्मेदनियरसे एक हजार मुनियों के साथ सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥१२०॥
फागुण - बहुले पंचमि • अबरहे प्रस्सिमौतु पाए । स्वाहिय-छ-सब-जूबो सिद्धि - गदो बासुपुत्रा-बिगो ॥१२०७।।
। ६०१ । मर्ष :--वासुपूज्य जिनेन्द्र फाल्गुन-कृष्णा पंचमीके दिन अपरामें अस्विनी नक्षत्रके रहते घासो एक मुनिपोंके साथ धम्पापुरसे सिविको प्राप्त हुए हैं ।।१२०७१
सुक्कट्ठमी - परोसे, मासा जम्म - भम्मि सम्मे। छसम • मुगि - संजुत्तो, मुनि पलो विमालसामी ।।१२०८।।
w:-विमसनाप स्वामी आषान-शुक्ला अष्टमी को प्रदोष काल (दिन और रात्रिके सम्धिकाम ) में अपने जन्म ( पूर्वभाद्रपद) नक्षरके रहते इसी मुनिपोंके साप सम्मेवशिलारसे मुक्त हुए ।।१२०८॥
तस्स किन्ह-पमिछम-विषपरोसम्म जम्म-भासते। सम्मेवम्मि मनतो, सत - सहस्सेहि संपत्तो ॥१२०६।।
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१.4.क. उ. पुणमाए। २. प. प. जुझ ।