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________________ Thanks :-- हाल की गाथा : ११७२-११७५ ] पउत्यो महाहियारो [ २४३ इगि-सब-रहिव-सहस्संगवी पण-सयामि विउलमदी। चारि - सया मामी, गण · संसा गहमान - जिने ॥११७२।। ६.. | बि ५०० । बा ४०. । प:-वर्षमान जिनेन्द्र के सात गोंमेंसे पूर्वधर तीन सौ, शिक्षकगण नौ हजार नौ सो, भवधिनानी तेरह सौ, केवली सात सी, विक्रिया-ऋद्धि-धारी सो का एक हजार ( नौ सो), विपुल. मति पाँचसो पोर वादी पार सौ थे ।।११७१.१९७२।। सर्व तीर्थंकरोंके सातों गरोंमेंसे प्रत्येक की कुल संख्यागभ-पज-मस-कम-तिक, पुश्यषरा सख्य-तिस्प-कला। पण-पत्र-पम-गमा मभ-गम-दुम-करकमेण सिक्खगना ॥११७३।। सम्ब-पुण्यपराक-कमेण जारिणम्बाइ ३६६४० । मथ सि २०५०५५५ । म :-सर्व तीकरों के शून्य, चार, चो, छ मौर तीन इनने ( ३६६४० ) अतू प्रमाण पूर्वधर तया पाच, पांच, पाच. शून्य, शून्य, शून्य मोर दो इतने (२०.०५५५) अप्रमाण शिक्षक-गए थे ॥११७३|| गयगंबर-छत्सत्त-एषका सन्धे वि ओहि-पानीओ। केवलगानी सम्, गयरबर - अट्ट - पंध - अट्ठमका ।।११५४॥ सम्ब-मोही १२७६.. । सव-के १८५८०० । सर्व:--सर्व अवविज्ञानी शुन्य, शून्य, छह, सात, दो मोर एक इतने (१२७६..) अप्रमाण; सपा सर्व केवली शुन्य, शुन्य, पाठ, पाच, आठ और एफ इसमे (१८५८०.) अनु-प्रमाण थे॥११७४1 आगास-भ-'म पम-दु-वु-प्रक-कमेष सम्व-वेगयो । पंचंबर-मजय-चक्र-पणमेशक घिय सव्व - विवलमदी ।।११७५॥ ___ सम्ब-ये २२५६० । सव्व-वि १५४६०५ । .... पण ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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