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________________ ३४४ ] सिलीयपणत्तो [ गाथा : ११७६ प्रबं:-सर्व विक्रिया-ऋषि-धारी अङ्क-ममें शुन्य, शून्य, मो, पांच, दो और दो (२२५६०.) अंक-प्रमाण तथा सर्व विपुलमति पांच, शून्य. नो, चार, पांच और एक (१५४१०१) महप्रमाण पे ।।११।। पभ-मम-ति-छ-एक्केषक, अंक-कामे होंति सम्बबादि-गा। सत्तगना गम - अंबर - गयबष्ट - पसमा अय-नोति ॥११७६॥ सम्ब-वादिगणा ११५३०० । सब-गणा २०४८००० | पर्व:--सर्व वादी बर-क्रमसे झूग्य, शून्म, तीन. छह एक और एक ( १९६००) मा प्रमाण घे। इन सातों गणोंकी सम्पूर्ण संख्या शून्य, शून्य, शून्य, पाठ, पार, वाठ मोर दो इन ( २८४६०००) पडो-प्रमाण होती है ।।११७६।। नोट :-११.३ से ११७६ अर्थात् ७३ गापात्रों की मूल-संरष्टियोंका मषं इस तासिकामें निहित है (तालिका २८ अगले पृष्ठ पर देखिये
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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