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गाथा : १९३५-११३८ ]
त्यो महाहियारो
स-सं-सहागिता पण सहि बिजली । चाव संथा बावी, येथे सिरिपुप्फदंतम्मि ।।११३५ ।। वि ७५०० | बा ६६०० ।
पर्यटक
वर्ष :- श्री पुष्पदन्तके सात गणों में से
पूर्ववर पचतोके तिगुने (पन्द्रह ) शिक्षक एक लाख पचपन हजार पोषसो अवधिज्ञानी आठ हजार चारसो, केवली सात हजार पाँच सौ विक्रियाऋद्धिवारी क्रमशः शून्य शून्य शून्य तीन और एक अंक ( तेरह हजार ) प्रमाण विपुलमति सात हजार पाँच र वादी छह हजार छहसी थे ।।११३३-११३५।।
शीतलनाथ के सात गणोंकी संख्या
एक्क सहस्सं वज्र- संघ-संजुत्त सीयलम्म पुग्वधरा । चरणसट्ठि सहस्सा मेलि सभा सिमलगा होंसि ।।११३६ ।। पु१४०० मि ५६२०० ।
दु-सय-जुन- सग सहस्सा सत्त- सहस्सानि आहि- केवलिनो ।
चदरंक - ताढिवाणि, सिणि सहस्वाणि वेगुब्बी ।।११३७६४
ओ ७२०० । के ७०००। वे १२००० ।
सत सहस्वाणि पुढं जुतानि पासदेहि विजसमदी । संप्तादपण सिरिसीयले मम्मि ।११३८ ।
सवाई,
वादी
त्रि ७५००। वा ५७०० |
अर्थ:- श्री शीतलनाथस्वामीकं सात गोंमेंसे पूर्वधर एक हजार चारसो, शिक्षक उनसठ हजार दो सौ, बदधिशानी सात हजार दो सौ, कंवली सात हजार, विक्रियाद्विधारी बारसे गुपित तीम ( अर्थात् बारह ) हजार, विपुलमति सात हजार पाँच तो और बादी पाँच हजार सात सौ ये ।। ११३६ - ११३८ ॥
श्रेयांस- जिनेन्द्रके सात गणका प्रमाण
एक्कं चेय सहल्सा, संता तिय-सएहिं पुष्षधरा । अडवाल - सहस्साह
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दो-सयजुत्ताइ सिक्खगना ।। ११३६ ।।
पु१३०० । सि ४८२०० ।