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तिलोयाणाती
[गाथा : ११३०-११३४ एक्कामपि - समापामासापा, विन समोर भट्ठ सहस्सा कस्सम - सहिया बादी सुपास - जिज ॥११३०॥
वि ६१५० । वा ८६०० । पं:-सुपाय जिनेन्द्र के सात गरगों से पूर्वधर दो हजार तीस, शिक्षकगण दो लाख बवासीस हजार नौ सौ बीस, अषिशानी नौ हजार, केवली म्यारह हजार, विक्रिया-ऋविधारक विरेपन सौ अधिक दस हजार ( पन्द्रह हजार तीन सौ), विपुलमति नौ हजार एकसौ पचास और वादी पाठ हजार हसो ।११२-११३०॥
चन्द्रप्रभके सात गोंको संख्याघसारि सहस्साई, वे यहम्मि पुम्बबरा। रो-लाख - रस - सहसा, बत्तारि सया मिक्सगा ॥११॥
।पु ४००० । सि २१०४०० । ये भट्टरस सहस्सा, छन्द सया बद्र सग सहस्सा। कमलो ओही फेवलि - घेउयो - विजलमबि बापी ११२॥
'पो २००० । के १८००० । वे ६०० । वि०.01 मा ७००० ।।
बर्ष:- चन्द्रप्रम जिनेन्द्र के सात गोंसे पूर्वघर चार हजार शिक्षाकगरण दो लास दस इजार पारसी और अवश्विशानी, केवली, विक्रियाघारी, विपुलमति तथा वादी क्रमश: दो हजार, पठारह इजार, छहसी, आठ हजार और सात हजार थे ।।११३१-११३२।।
पष्पदन्तके सात गोंकी संख्याति-गुरिणय-पंच-सयाई, पुष्वषरा सिक्खयाई इगि-लक्षा। पणवण - सहस्सा, आहियाई पररा - सएह ॥११॥३॥
पु. १५०० | सि १५५५०० । पाउसोदि-सया ओही, केसिणो सग सहस्स-पंच-सया । एह-सन्म-मान-सिप-इगि-अंक-कमेणं पि बेगुली ॥१४॥
ओ ८४०० । के ७५०० । वे १३०००।