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________________ भाषा : २४-३२ ] उत्यो महाहिया म प्रासादोंका विस्तारादि पहतरि बाबानि' सदा उत्तुमा सय-मभूमि पीह-चुमा | जहाि होति | दंड ७५ | १०० | ५० · भादर्शक : शहरी ऊंबे, सौ (१०० ) मनुष लम्बे और पचास (५०) धनुष प्रमाण विस्तारवाले हैं ।। २९ ।। इन प्रासादोंके द्वारोंका विस्तारादिक 1 पासाब- दुवारेसु बारस चावाणि होति उच्छे हो । पक्कं छण्णासो लगाई तन्हि पत्तारि ।।३.०॥ दंड १२ । ६ । ४ । पासादा ||२६ इन प्रासादोंके द्वारोंमें प्रत्येककी ऊंचाई बारह ( १२ ) धनुष, विस्तार ह (६) धनुष और अवगाव ( मोटाई ) चार (४) धनुष प्रमाण है ।। ३० ।। पनवीसं बोणि सया, उच्छेहो दोहं ति-सय-पर्णा विहस्स स होदि बेटु-पासावे । च विक्लभं ||३१|| तान बुवारुच्छे हो* वंजा छत्तीस" होदि अट्ठारस विमलसो, बारस जियमेन दंड २२५ । ३०० | ११० । अर्थ : ज्येष्ठ प्रासादों में प्रत्येककी ऊँचाई दो सौ पच्चीस ( २२५ ) धनुष, लम्बाई तीन सौ (३००) धनुष और विस्तार लम्बाईसे आधा अर्थात् एक सौ पचास (१५० ) धनुष प्रमाण है ।। ३१ ।। प्रासादोंके द्वारोंका विस्तारादि ३.दी। [e पत्लेक्कं । अवगाढं ॥१३२॥ ६ ३६ । १८ । १२ । अर्थ : ज्येषु प्रासादोंके द्वारोंमें प्रत्येक द्वारकी ऊँचाई नियमसे छत्तीस (३६) धनुष, विष्कम्भ अठारह (१८) धनुष और अनगाढ़ बारह ( १२ ) धनुष प्रमाण है ।। ३२ ।। १. व. बाबासरिण । २.म. ४. ब. ब. बी "
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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