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________________ निलोयपण्णत्ती [ गाथा : २४-२५ :- उत्कृष्ट बायका दो सौ (२००) धनुष, मध्यमका एकसौ पचास (१५० ) धनुष और जघन्यका एकसौ ( १०० ) धनुष प्रमाण विस्तार है ||२३|| ८] तिथिहाओ' 'वावीओ, निय-हव- बसंत मेत्तमवगाढा । कस्हार-कमल-कुवलय-'कुमुवामोदेहि परिपुन्हा ||२४|| २० १ १५४ ११० । अर्थ :- कैरव ( सफेद कमल ), कमन, नीलकमल एवं कुमुदोंकी सुगन्धसे परिपूर्ण ये अपने हिम-धनुष १५ धनुष और १० धनुष ) Ro. तीनों अकारही वजियाँ प्रमाण गहरी है || २४ ॥ बर- गोउर-वार-सोरणाई पि । तर - नवराणि - रम्माणि ॥ २५ ॥ भागे, अर्थ :- वेदीके अभ्यन्तर भाग में प्राकार से बेष्टित एवं उत्तम गोपुरद्वारों तथा तोरणोंसे संयुक्त व्यन्तरदेवोंके रमणीक नगर है ।। २५ ।। घर-बेवाणं तस्सि गयराणि होति रम्मानि । अभंतरम्मि भागे, महोरगानं च बेति परे ॥ १२६॥ पाठान्तरम् 1 वनों में स्थित व्यन्तर देवोंके नगर पायार- परिताप, अवमंतर मि :- देवीके भभ्यन्तर भाग में बेलन्धर देवोंके और उससे मागे महोरग देवोंके रमणीक पाठान्तर । नगर है ।। २६ ।। व्यन्नर - नगरोंमें स्थित प्रासाद - गयरेसु रमभिज्जा, पासादा होंति विविह विष्णासा | अम्भंतर बेसरा, बिप्यंतरंग-जीबा समेत जात्रा -बर- रयन-नियरमया ॥२७॥ विविह· धूम-धड-सुता । वज्रजमय वर कवाडा, बेदी- गोउर- दुवार-संवृत्ता ॥ २६ ॥ अर्थ :--नगरोंमें अभ्यन्तर भाग में चैत्यवृत्रों सहित, घनेक उत्तमोत्तम रलसमूहोंसे निर्मित, चारों ओर प्रदोष रत्नदीपकों वाले, विविध नृपघटोंसे युक्त, वज्रमय श्रेष्ठ कपाटोंवाल, वेदी एवं गोपुरद्वारों सहित विविध रचनाओंवाले रमणीक प्रासाद है ।। २७-२८ ॥ १. क. उ. तिविहक्षে । ५. . क. ज. परियबाद । २.उ बस । ....de, ■. Beige i उ.कुमुद । ७. . . . ज. पुरा ३ क्र. ४. व. २५ ॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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